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"कुछ शे’र / जलील मानिकपुरी" के अवतरणों में अंतर

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कहाँ चमन में निशेमन<ref></ref> बने या न बने ।
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कहाँ चमन में निशेमन<ref>आशियाना, घोंसला, नीड़</ref> बने या न बने ।
  
 
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रहे असीर<ref>बन्दी, क़ैदी</ref> तो शिकवा हुए असीरी<ref>क़ैद, कारावास</ref> के,
 
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रिहा हुआ तो मुझे गम है रिहाई का ।
 
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02:02, 19 जनवरी 2014 के समय का अवतरण

1.
अब क्या करूँ तलाश किसी कारवाँ को मैं,
गुम हो गया हूँ पाके तेरे आस्ताँ<ref>चौखट, दहलीज़, ड्योढ़ी</ref> को मैं ।
 
2.
आज आँसू तुमने पोंछे भी तो क्या,
यह तो अपना उम्र भर का हाल है ।

3.
आता नहीं ख़याल अब अपना भी ऐ 'जलील',
इक बेवफ़ा की याद ने सब कुछ भुला दिया ।
 
4.
आप पहलू<ref>पार्श्व, बगल</ref> में बैठे हैं तो संभलकर बैठें,
दिले-बेताब को आदत है मचल जाने की ।

5.
उस गिरिफ़्तारी की पूछो न तड़प जिसके लिए,
दर<ref>दरवाज़ा</ref> कफ़स<ref>पिंजड़ा</ref> का हो खुला और ताक़ते-परवाज़<ref>उड़ने की शक्ति</ref> न हो ।

6.
कफ़स<ref> पिंजड़ा</ref> से छूटकर पहुँचे न हम दीवार-ए-गुलशन तक,
रसाई<ref>पहुँच</ref> आशियाँ तक किस तरह बेबालोपर<ref> बिना पंख, जिसके पास जीविका का कोई साधन न हो</ref> होती ।
 
7.
कह दो यह कोहकन<ref>पहाड़ काटने वाला, पर्वतभेदी, (शीरी के प्रेम में फरहाद ने शीरीं के कहने से पहाड़ काटते हुए अपने प्राण दे दिए थे)</ref> से मरना नहीं कमाल<ref>्गुण, ख़ूबी</ref>,
मरकर के हिज्र-ए-यार<ref>प्रेम की जुदाई या वियोग</ref> में जीना कमाल है।
 
8.
कासिद<ref>डाकिया</ref> पयाम<ref>संदेश</ref>-ए-शौक को देना न बहुत तूल,
कहना फकत यह उनसे कि आँखें तरस गईं ।

9.
कुछ इख़्तियार नहीं किसी का तबिअत पर,
यह जिस पर आती है बेइख़्तियार<ref>सहसा, बेतहाशा</ref> आती है ।

10.
कुछ इस अदा से यार ने पूछा मेरा मिजाज,
कहना ही पड़ा शुक्र है परवरदिगार<ref>ईश्वर, ख़ुदा, परमात्मा</ref> का ।

11.
ख़ूब इन्साफ़ तेरे अंजुमन<ref>महफ़िल</ref>-ए-नाज में है,
शम्अ का रंग जमे, ख़ून हो परवाने का ।

12.
चाल मस्त, नज़र मस्त, अदा में मस्ती,
जब वह आते हैं लूटे हुए मैखाने को ।

13.
बहार फूलों की नापाइदार<ref>अस्थायी, थोड़े समय तक रहने वाला</ref> कितनी है,
अभी तो आई, अभी उड़ गई हँसी की तरह ।
  
14.
बिछड़ कर कारवाँ से मैं कभी तन्हा नहीं रहता,
रफ़ीक-ए-राह<ref>सहयात्री, सहचर, हमसफ़र</ref> बन जाती है, गर्द-ए-कारवाँ<ref>रास्ते की धूल</ref> मेरी ।

15.
बिजली की ताक-झाँक से तंग आ गई है जान,
ऐसा न हो कि फूँक दूँ ख़ुद आशियाँ को मैं ।

16.
मस्त करना है तो खुम से मुँह लगा दे साक़ी,
तू पिलाएगा कहाँ तक मुझे पैमाने से ।

17.
मुझसे इरशाद<ref>माँग, हुक़्म</ref> यह होता है तड़पा न करे कोई,
कुछ तुम्हें अपनी अदाओं पर नज़र है कि नहीं ?
 
18.
मुझे जिस दम ख़याले-नर्गिसे-मस्ताना<ref>मदभरी या नशीली आँखों का ख़याल</ref> आता है,
बड़ी मुश्किल से काबू में दिले-दीवाना आता है।
  
19.
मुझे तमाम जमाने की आरजू क्यों हो,
बहुत है मेरे लिये इक आरजू तेरी।

20.
मैं समझता हूँ तेरी इशवागिरी<ref>जादूगरी</ref> को साकी,
काम करती है नजर, नाम पैमाने का है।

21.
मैंने जो तुम्हें चाहा, क्या इसमें ख़ता मेरी,
यह तुम हो, यह आइना, इन्साफ़ करो ।
 
22.
यह जो सर नीचे किए हुए बैठे है,
जान कितनों की लिए बैठे हैं ।

23.
यह सोच ही रहे थे कि बहार ख़त्म हुई,
कहाँ चमन में निशेमन<ref>आशियाना, घोंसला, नीड़</ref> बने या न बने ।

24.
रहे असीर<ref>बन्दी, क़ैदी</ref> तो शिकवा हुए असीरी<ref>क़ैद, कारावास</ref> के,
रिहा हुआ तो मुझे गम है रिहाई का ।

25.
वादा करके और भी आफ़त में डाला आपने,
ज़िन्दगी मुश्किल थी, अब मरना भी मुश्किल हो गया ।

26.
सब बाँध चुके कब के, सरे-शाख निशेमन,
एक हम हैं कि गुलशन की हवा देख रहे हैं ।

27.
हसरतों का सिलसिला कब ख़त्म होता है 'जलील',
खिल गए जब गुल तो पैदा और कलियाँ हो गईं ।

शब्दार्थ
<references/>