भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सच से शायद दूर नहीं ! / उत्तमराव क्षीरसागर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उत्तमराव क्षीरसागर |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
00:03, 8 फ़रवरी 2014 के समय का अवतरण
( कुछ अजब बात करते हैं )
सर्द रातों का
गर्म जादू
दूर - दूर ... बहुत दूर तक
( मालूम पडता है )
जैसे, फैला हो रेत का संसार
समय के कुछ टुकडे
छूटते छटपटाते - से
ज़िंदगी से दूर ... दूर भागते हुए
मिटाना चाहते हैं थकान
ढूँढते हैं पानी रेत के जंगल में
इन्हीं जंगलों से पहुँचते
हैं कई रास्ते
उन गुफाओं तक
जिनसे
निकलकर आ चुके हैं
इन सर्द रातों तक
- 1995 ई0