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लागा झुलानिया प धक्का, बलम कलकत्ता पहुंची गए | लागा झुलानिया प धक्का, बलम कलकत्ता पहुंची गए | ||
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♦ रचनाकार: अज्ञात
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साभार: सिद्धार्थ सिंह
लागा झुलानिया प धक्का, बलम कलकत्ता पहुंची गए
कैसे क मति मोरी बैरन होई गई
कीन्ह्यो मैं हठ अस पक्का, बलम कलकत्ता...
लागे जेठानिया के बोल बिखै ज़हर से
लागा करेजवा में लुक्काआग , बलम कलकत्ता...
रेक्सा चलायें पिया तांगा चलायें
झुलनी के कारण भयें बोक्का पागल, बलम कलकत्ता...
बरहें बरिस झुलनी लई के लौटें ,
देहिंयाँ हमारि भै मुनक्का, बलम कलकत्ता...
लागा झुलानिया प धक्का बलम कलकत्ता पहुँची गए