भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जब भी सर चढ़ के बहा है दरिया / नवीन सी. चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवीन सी. चतुर्वेदी }} {{KKCatGhazal}} <poem> जब भ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
14:14, 26 फ़रवरी 2014 के समय का अवतरण
जब भी सर चढ़ के बहा है दरिया
सब की आँखों में चुभा है दरिया
आब को अक़्ल भी होती है जनाब
कृष्ण के पाँव पड़ा है दरिया
ख़ुद-ब-ख़ुद अपनी हिफ़ाज़त करना
राम को लील चुका है दरिया
बेकली से ही उपजता है सुकून
जी! सराबों का सिला है दरिया
बाक़ी दुनिया की तो कह सकता नहीं
मेरी धरती पे ख़ुदा है दरिया
ख़ुद में रखता है अनासिर सारे
एक अजूबा सा ख़ला है दरिया