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13:26, 18 मार्च 2014 का अवतरण
जाति की, वु+ल की, धारम की, लाजकी।
बेतरह ए ले रही हैं फबतियाँ।
हैं लगाती ठोकरें मरजाद को।
देवियाँ हैं याकि ए हैं बीबियाँ।
हम उन्हें तब देवियाँ वै+से कहें।
बेतरह परिवार से जब तन गईं।
बीबिआना ठाट है बतला रहा।
आज दिन वे बीबियाँ हैं बन गईं।
चूस करके सब सलूकों का लहू।
नेह-साँसें चाव से गिनने लगीं।
तब भला न मसान घर वै+से बने।
डायनें जब देवियाँ बनने लगीं।
क्या न है फेर यह समय का ही।
देवियाँ जाँय जो चुड़ैलें बन।
नाम के साथ वे लिखें देवी।
जो रखें नाम को न देवीपन।
सब घरों को दें सरग जैसा बना।
लाल प्यारे देवतों जैसा जनें।
अब रहे ऐसे हमारे दिन कहाँ।
देवियाँ जो देवियाँ सचमुच बनें।