भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"नापाकपन / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ |अ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) छो (Sharda suman moved page नापाकपन to नापाकपन / हरिऔध) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:29, 18 मार्च 2014 का अवतरण
देख वु+ल की देवियाँ कँपने लगीं।
रो उठी मरजाद बेवों के छले।
जो चली गंगा नहाने, क्यों उसे।
पाप - धारा में बहाने हम चले।
रंग बेवों का बिगड़ते देख कर।
किस लिए हैं ढंग से मुँह मोड़ते।
जो सुधार तीरथ बनाती गेह को।
क्यों उसे हैं तीरथों में छोड़ते।
जोग तो वह कर सकेगी ही नहीं।
जिस किसी को भोग ही की ताक हो।
जो हमीं रक्खें न उस का पाकपन।
पाक तीरथ क्यों न तो नापाक हो।
जब कि बेवा हैं गिरी ही, तो उन्हें।
दे न देवें पाप का थैला कभी।
मस्तियों से चूर दिल के मैल से।
तीरथों को कर न दें मैला कभी।