"दृष्टान्त / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर
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<poem> | <poem> | ||
− | + | है जिन्हें सूझ, जोड़ से ही, वे। | |
− | + | ||
भिड़ सके लाग डाँट साथ बड़ी। | भिड़ सके लाग डाँट साथ बड़ी। | ||
− | |||
भूल कर भी लड़ी न भौंहों से। | भूल कर भी लड़ी न भौंहों से। | ||
− | + | जब लड़ी आँख साथ आँख लड़ी। | |
− | जब लड़ी आँख साथ | + | |
देख कर रंग जाति का बदला। | देख कर रंग जाति का बदला। | ||
− | |||
जाति का रंग है बदल जाता। | जाति का रंग है बदल जाता। | ||
− | |||
देख आँखें हुईं लहू जैसी। | देख आँखें हुईं लहू जैसी। | ||
− | |||
आँख में है लहू उतर आता। | आँख में है लहू उतर आता। | ||
देख दुख से अधीर संगी को। | देख दुख से अधीर संगी को। | ||
− | |||
है जनमसंगिनी लटी पड़ती। | है जनमसंगिनी लटी पड़ती। | ||
− | |||
दाढ़ है दाँत के दुखे दुखती। | दाढ़ है दाँत के दुखे दुखती। | ||
− | |||
सिर दुखे आँख है फटी पड़ती। | सिर दुखे आँख है फटी पड़ती। | ||
तब भलाई भूल जाती क्यों नहीं। | तब भलाई भूल जाती क्यों नहीं। | ||
− | |||
जब सचाई ही नहीं भाती रही। | जब सचाई ही नहीं भाती रही। | ||
− | + | जोत तब कैसे चली जाती नहीं। | |
− | जोत तब | + | |
− | + | ||
जब किसी की आँख ही जाती रही। | जब किसी की आँख ही जाती रही। | ||
कौन आला नाम रख आला बना। | कौन आला नाम रख आला बना। | ||
− | |||
है जहाँ गुन, है निरालापन वहीं। | है जहाँ गुन, है निरालापन वहीं। | ||
− | |||
साँझ फूली या कली फूली फबी। | साँझ फूली या कली फूली फबी। | ||
− | |||
आँख की फूली फबी फूली नहीं। | आँख की फूली फबी फूली नहीं। | ||
एक से जो दिखा पड़े, उनका। | एक से जो दिखा पड़े, उनका। | ||
− | |||
एक ही ढंग है न दिखलाता। | एक ही ढंग है न दिखलाता। | ||
− | |||
है कमल फूलना भला लगता। | है कमल फूलना भला लगता। | ||
− | |||
आँख का फूलना नहीं भाता। | आँख का फूलना नहीं भाता। | ||
काम क्या अंजाम देगा दूसरा। | काम क्या अंजाम देगा दूसरा। | ||
− | |||
जब नहीं सकते हमीं अंजाम दे। | जब नहीं सकते हमीं अंजाम दे। | ||
− | |||
दे सकेगा काम सूरज भी तभी। | दे सकेगा काम सूरज भी तभी। | ||
− | |||
जब कि अपनी आँख का तिल कामदे। | जब कि अपनी आँख का तिल कामदे। | ||
पड़ बुरों में संगतें पाकर बुरी। | पड़ बुरों में संगतें पाकर बुरी। | ||
− | |||
सूझ वाला कब बुराई में फँसा। | सूझ वाला कब बुराई में फँसा। | ||
− | |||
देख लो काली पुतलियों में बसे। | देख लो काली पुतलियों में बसे। | ||
− | |||
आँख के तिल में न कालापन बसा। | आँख के तिल में न कालापन बसा। | ||
− | तब भला मैली | + | तब भला मैली कुचैली औरतें। |
− | + | ||
क्यों न पायेंगी निराले पूत जन। | क्यों न पायेंगी निराले पूत जन। | ||
− | |||
आँख की काली कलूटी पुतलियाँ। | आँख की काली कलूटी पुतलियाँ। | ||
− | |||
जब जनें तिल सा बड़ा न्यारा रतन। | जब जनें तिल सा बड़ा न्यारा रतन। | ||
− | फूट पड़ता है | + | फूट पड़ता है उजाला भी वहाँ। |
− | + | घोर अँधियाली जहाँ छाई रही। | |
− | घोर | + | |
− | + | ||
जगमगा काली पुतलियों में हमें। | जगमगा काली पुतलियों में हमें। | ||
− | |||
जोत वाले तिल जताते हैं यही। | जोत वाले तिल जताते हैं यही। | ||
सूझ वाले एक दो ही मिल सके। | सूझ वाले एक दो ही मिल सके। | ||
− | + | और सब अंधे मिले हम को यहाँ। | |
− | और सब | + | |
− | + | ||
देखने को देह में तिल हैं न कम। | देखने को देह में तिल हैं न कम। | ||
− | |||
आँख के तिल से मगर तिल हैं कहाँ। | आँख के तिल से मगर तिल हैं कहाँ। | ||
वह कभी खींच तान में न पड़ा। | वह कभी खींच तान में न पड़ा। | ||
− | |||
है जिसे आन बान की न पड़ी। | है जिसे आन बान की न पड़ी। | ||
− | |||
मोतियों से बनी लड़ी से कब। | मोतियों से बनी लड़ी से कब। | ||
− | |||
आँसुओं की लड़ी लड़ी झगड़ी। | आँसुओं की लड़ी लड़ी झगड़ी। | ||
बीरपन से तन गयों के सामने। | बीरपन से तन गयों के सामने। | ||
− | |||
कब जुलाहे जन सके ताना तने। | कब जुलाहे जन सके ताना तने। | ||
− | |||
सूर कहला ले, मगर क्यों सूरमा। | सूर कहला ले, मगर क्यों सूरमा। | ||
− | |||
सूरमापन के बिना अंधा बने। | सूरमापन के बिना अंधा बने। | ||
− | भेख सच्चा | + | भेख सच्चा दिख पड़ा न हमें। |
− | + | ||
देख पाये जहाँ तहाँ भेखी। | देख पाये जहाँ तहाँ भेखी। | ||
− | |||
फूल कब पा सके किसी से हम। | फूल कब पा सके किसी से हम। | ||
− | |||
नाक फूली हुई बहुत देखी। | नाक फूली हुई बहुत देखी। | ||
वे सभी क्यारियाँ निराली हैं। | वे सभी क्यारियाँ निराली हैं। | ||
− | |||
बेलियाँ हैं जहाँ अजीब खिली। | बेलियाँ हैं जहाँ अजीब खिली। | ||
− | |||
कब सकीें बोल बोलियाँ न्यारी। | कब सकीें बोल बोलियाँ न्यारी। | ||
− | |||
बोलती नाक कम हमें न मिली। | बोलती नाक कम हमें न मिली। | ||
जिस जगह पर लगें भले लगने। | जिस जगह पर लगें भले लगने। | ||
− | |||
चाहिए हम वहीं उमग अटकें। | चाहिए हम वहीं उमग अटकें। | ||
− | |||
हैं कहीं पर अगर लटक जाना। | हैं कहीं पर अगर लटक जाना। | ||
− | |||
तो लटें गाल पर न क्यों लटकें। | तो लटें गाल पर न क्यों लटकें। | ||
− | लोग | + | लोग कैसे उलझ सकेंगे तब। |
− | + | ||
जब हमारी निगाह हो सुलझी। | जब हमारी निगाह हो सुलझी। | ||
− | + | बान होते हुए है उलझने की। | |
− | बान होते हुए है | + | |
− | + | ||
लट कभी गाल से नहीं उलझी। | लट कभी गाल से नहीं उलझी। | ||
है लुनाई फिसल रही जिस पर। | है लुनाई फिसल रही जिस पर। | ||
− | + | है उसे कम क्या कि कुछ पहने। | |
− | है उसे | + | |
− | + | ||
गोल सुथरे सुडौल गालों के। | गोल सुथरे सुडौल गालों के। | ||
− | |||
बन गये रूप रंग ही गहने। | बन गये रूप रंग ही गहने। | ||
− | + | कुछ बड़ों से हो न, पर कितनी जगह। | |
− | + | ||
काम करता है बड़ों का मेल ही। | काम करता है बड़ों का मेल ही। | ||
− | |||
पत बचाती है उसी की चिकनई। | पत बचाती है उसी की चिकनई। | ||
− | |||
गाल का तिल क्यों न हों बेतेल ही। | गाल का तिल क्यों न हों बेतेल ही। | ||
सब जगह बात रह नहीं सकती। | सब जगह बात रह नहीं सकती। | ||
− | |||
बात का बाँधा दें भले ही पुल। | बात का बाँधा दें भले ही पुल। | ||
− | |||
हम रहें क्यों न गुलगुले खाते। | हम रहें क्यों न गुलगुले खाते। | ||
− | |||
रह सका गाल कब सदा गुलगुल। | रह सका गाल कब सदा गुलगुल। | ||
जो कि सुख के बने रहे कीड़े। | जो कि सुख के बने रहे कीड़े। | ||
− | |||
वे पडे देख दुख उठाते भी। | वे पडे देख दुख उठाते भी। | ||
− | |||
जो उठें तो उठें सँभल करके। | जो उठें तो उठें सँभल करके। | ||
− | |||
हैं उठे गाल बैठे जाते भी। | हैं उठे गाल बैठे जाते भी। | ||
खोजने से भले नहीं मिलते | खोजने से भले नहीं मिलते | ||
− | |||
पर बुरों के सुने कहाँ न गिले। | पर बुरों के सुने कहाँ न गिले। | ||
− | |||
मिल गये बार बार बू वाले। | मिल गये बार बार बू वाले। | ||
− | + | मुँह महकते हमें कहीं न मिले। | |
− | मुँह | + | |
लत बुरी छूटती नहीं छोड़े। | लत बुरी छूटती नहीं छोड़े। | ||
− | |||
क्यों न दुख के पड़े रहें पाले। | क्यों न दुख के पड़े रहें पाले। | ||
− | |||
पान का चाबना कहाँ छूटा। | पान का चाबना कहाँ छूटा। | ||
− | |||
मुँह छिले और पड़ गये छाले। | मुँह छिले और पड़ गये छाले। | ||
जो उन्हें गुन का सहारा मिल सके। | जो उन्हें गुन का सहारा मिल सके। | ||
− | |||
बात तो कब गढ़ नहीं लेते गुनी। | बात तो कब गढ़ नहीं लेते गुनी। | ||
− | |||
देख तो पाई नहीं पर बारहा। | देख तो पाई नहीं पर बारहा। | ||
− | |||
बात 'बूढ़े मुँह मुँहासे' की सुनी। | बात 'बूढ़े मुँह मुँहासे' की सुनी। | ||
दुख मिले चाहे किसी को सुख मिले। | दुख मिले चाहे किसी को सुख मिले। | ||
− | |||
है सभी पाता सदा अपना किया। | है सभी पाता सदा अपना किया। | ||
− | + | आप ही तो वह अँधेरे में पड़ा। | |
− | आप ही तो वह | + | |
− | + | ||
जो किसी मुँह ने बुझा दीया दिया। | जो किसी मुँह ने बुझा दीया दिया। | ||
जो भरोसे न भाग के सोये। | जो भरोसे न भाग के सोये। | ||
− | |||
देव उन से फिरा नहीं फिर कर। | देव उन से फिरा नहीं फिर कर। | ||
− | |||
जो रखें जान गिर उठें वे ही। | जो रखें जान गिर उठें वे ही। | ||
− | |||
कब भला दाँत उठ सका गिर कर। | कब भला दाँत उठ सका गिर कर। | ||
हैं दुखी दीन को सताते सब। | हैं दुखी दीन को सताते सब। | ||
− | |||
हो न पाई कभी निगहबानी। | हो न पाई कभी निगहबानी। | ||
− | |||
लग सका और दाँत में न कभी। | लग सका और दाँत में न कभी। | ||
− | |||
हिल गये दाँत में लगा पानी। | हिल गये दाँत में लगा पानी। | ||
नटखटों से बचे रहें कब तक। | नटखटों से बचे रहें कब तक। | ||
− | |||
जब उन्हें छोड़ नटखटी न हटी। | जब उन्हें छोड़ नटखटी न हटी। | ||
− | |||
क्या हुआ बार बार बच बच कर। | क्या हुआ बार बार बच बच कर। | ||
− | |||
कब भला दाँत से न जीभ कटी। | कब भला दाँत से न जीभ कटी। | ||
क्यों किसी बेगुनाह को दुख दें। | क्यों किसी बेगुनाह को दुख दें। | ||
− | |||
छूट क्यों जाँय कर गुनाह सगे। | छूट क्यों जाँय कर गुनाह सगे। | ||
− | |||
और के हाथ में लगे तब क्यों। | और के हाथ में लगे तब क्यों। | ||
− | |||
जब बुरी जीभ में न दाँत लगे। | जब बुरी जीभ में न दाँत लगे। | ||
− | जो बड़प्पन है न तो | + | जो बड़प्पन है न तो कैसे बड़ा। |
− | + | ||
बन सके कोई बड़ाई पा बड़ी। | बन सके कोई बड़ाई पा बड़ी। | ||
− | |||
देख लो कवि के बनाने से कहाँ। | देख लो कवि के बनाने से कहाँ। | ||
− | |||
दाँत की पाँती बनी मोती-लड़ी। | दाँत की पाँती बनी मोती-लड़ी। | ||
सैकड़ों नेकियाँ किये पर भी। | सैकड़ों नेकियाँ किये पर भी। | ||
− | + | नीच है ढा बिपत्ति कल लेता। | |
− | नीच है ढा | + | |
− | + | ||
जीभ है दाँत की टहल करती। | जीभ है दाँत की टहल करती। | ||
− | + | दाँत है जीभ को कुचल देता। | |
− | दाँत है जीभ को | + | |
कर सकेंगे हित बने उतना न हित। | कर सकेंगे हित बने उतना न हित। | ||
− | |||
कर सकेगा हित सदा जितना सगा। | कर सकेगा हित सदा जितना सगा। | ||
− | |||
दे सकेंगे सुख न असली दाँत सा। | दे सकेंगे सुख न असली दाँत सा। | ||
− | |||
देख लो तुम दाँत चाँदी के लगा। | देख लो तुम दाँत चाँदी के लगा। | ||
है बुरी लत का लगाना ही बुरा। | है बुरी लत का लगाना ही बुरा। | ||
− | |||
बन हठीली क्यों न वह हठ ठानती। | बन हठीली क्यों न वह हठ ठानती। | ||
− | |||
हम अमी भर भर कटोरी नित पियें। | हम अमी भर भर कटोरी नित पियें। | ||
− | |||
पर चटोरी जीभ कब है मानती। | पर चटोरी जीभ कब है मानती। | ||
नित बुराई बुरे रहें करते। | नित बुराई बुरे रहें करते। | ||
− | |||
पर भली कब भला रही न भली। | पर भली कब भला रही न भली। | ||
− | + | दाँत चाहे चुभें, गड़ें, कुचलें। | |
− | दाँत चाहे चुभें, गड़ें, | + | |
− | + | ||
पर गले दाँत जीभ कब न गली। | पर गले दाँत जीभ कब न गली। | ||
सग दुखों से सगा दुखी होगा। | सग दुखों से सगा दुखी होगा। | ||
− | |||
जल ढलेगा जगह मिले ढालू। | जल ढलेगा जगह मिले ढालू। | ||
− | |||
प्यास से जब कि सूखता है मुँह। | प्यास से जब कि सूखता है मुँह। | ||
− | |||
जायगा सूख तब न क्यों तालू। | जायगा सूख तब न क्यों तालू। | ||
हित करेंगे जिन्हें कि हित भाया। | हित करेंगे जिन्हें कि हित भाया। | ||
− | |||
लोग चाहे बने रहें रूखे। | लोग चाहे बने रहें रूखे। | ||
− | |||
जीभ क्यों चाट चाट तर न करे। | जीभ क्यों चाट चाट तर न करे। | ||
− | |||
लब तनिक भी अगर कभी सूखे। | लब तनिक भी अगर कभी सूखे। | ||
जो भले हैं भला करेंगे ही। | जो भले हैं भला करेंगे ही। | ||
− | + | कुछ किसी से कभी बने न बने। | |
− | + | ||
− | + | ||
तर किया कब न जीभ ने लब को। | तर किया कब न जीभ ने लब को। | ||
− | |||
क्या किया जीभ के लिए लब ने। | क्या किया जीभ के लिए लब ने। | ||
बस नहीं जिस बात में ही चल सका। | बस नहीं जिस बात में ही चल सका। | ||
− | |||
हो गई उस बात में ही बेबसी। | हो गई उस बात में ही बेबसी। | ||
− | |||
क्यों न भूखा भूख के पाले पड़े। | क्यों न भूखा भूख के पाले पड़े। | ||
− | |||
क्यों न सूखा मुँह हँसे सूखी हँसी। | क्यों न सूखा मुँह हँसे सूखी हँसी। | ||
− | कर सकेंगी संगतें | + | कर सकेंगी संगतें कैसे असर। |
− | + | ||
सब तरह की रंगतें जब हों सधी। | सब तरह की रंगतें जब हों सधी। | ||
− | |||
लाल कब लब की ललाई से हुई। | लाल कब लब की ललाई से हुई। | ||
− | |||
कब हँसी उस की मिठाई से बँधी। | कब हँसी उस की मिठाई से बँधी। | ||
बाढ़ परवाह ही नहीं करती। | बाढ़ परवाह ही नहीं करती। | ||
− | + | क्यों न उस पर बिपत्ति हो ढहती। | |
− | क्यों न उस पर | + | |
− | + | ||
हम मुड़ा लाख बार दें लेकिन। | हम मुड़ा लाख बार दें लेकिन। | ||
− | |||
मूँछ निकले बिना नहीं रहती। | मूँछ निकले बिना नहीं रहती। | ||
है सभी खीज खीज जाते तब। | है सभी खीज खीज जाते तब। | ||
− | |||
रंज जब जान बूझ हैं देते। | रंज जब जान बूझ हैं देते। | ||
− | |||
बीसियों बार मनचले लड़के। | बीसियों बार मनचले लड़के। | ||
− | |||
मूँछ तो नोच नोच हैं लेते। | मूँछ तो नोच नोच हैं लेते। | ||
हो सके काम जो समय पर ही। | हो सके काम जो समय पर ही। | ||
− | |||
हो सका वह न ठान ठाने से। | हो सका वह न ठान ठाने से। | ||
− | |||
पाँव लेवें जमा भले ही हम। | पाँव लेवें जमा भले ही हम। | ||
− | |||
मूँछ जमती नहीं जमाने से। | मूँछ जमती नहीं जमाने से। | ||
− | पट सके, या पट न औरों से | + | पट सके, या पट न औरों से सके। |
− | + | ||
पर कहीं ''नटखट'' भला है बन गया। | पर कहीं ''नटखट'' भला है बन गया। | ||
− | |||
पड़ सके या पड़ सके पूरी नहीं। | पड़ सके या पड़ सके पूरी नहीं। | ||
− | |||
मूँछ भूरी का न भूरापन गया। | मूँछ भूरी का न भूरापन गया। | ||
कब भलाई से भलाई ही हुई। | कब भलाई से भलाई ही हुई। | ||
− | |||
सादगी से बात सारी कब सधी। | सादगी से बात सारी कब सधी। | ||
− | + | साध रह जाती सिधाई की नहीं। | |
− | + | ||
− | + | ||
देख सीधी दाढ़ियों को भी बँधी। | देख सीधी दाढ़ियों को भी बँधी। | ||
बाहरी रूप रंग भावों ने। | बाहरी रूप रंग भावों ने। | ||
− | |||
भीतरी बात है बहुत काढ़ी। | भीतरी बात है बहुत काढ़ी। | ||
− | |||
खुल भला क्यों न जाय सीधापन। | खुल भला क्यों न जाय सीधापन। | ||
− | |||
देख सीधी खुली हुई दाढ़ी। | देख सीधी खुली हुई दाढ़ी। | ||
गुन तभी पा सके निरालापन। | गुन तभी पा सके निरालापन। | ||
− | |||
जब गुनी जन बुरे नहीं होते। | जब गुनी जन बुरे नहीं होते। | ||
− | |||
सुर तभी हैं कमाल दिखलाते। | सुर तभी हैं कमाल दिखलाते। | ||
− | |||
जब गले बेसुरे नहीं होते। | जब गले बेसुरे नहीं होते। | ||
है किसी में अगर नहीं जौहर। | है किसी में अगर नहीं जौहर। | ||
− | |||
बीर तो वह बना न कर हीले। | बीर तो वह बना न कर हीले। | ||
− | |||
सूरमापन कभी नहीं पाता। | सूरमापन कभी नहीं पाता। | ||
− | |||
काट सूरन गला भले ही ले। | काट सूरन गला भले ही ले। | ||
जो बना जैसा बना वैसा रहा। | जो बना जैसा बना वैसा रहा। | ||
− | |||
बन सका कोई बनाने से नहीं। | बन सका कोई बनाने से नहीं। | ||
− | |||
चितवनें तिरछी सदा तिरछी मिलीं। | चितवनें तिरछी सदा तिरछी मिलीं। | ||
− | |||
गरदनें ऐंठी सदा ऐंठी रहीं। | गरदनें ऐंठी सदा ऐंठी रहीं। | ||
सब पढ़े पा सके न पूरा ज्ञान। | सब पढ़े पा सके न पूरा ज्ञान। | ||
− | |||
हैं बहुत से पढ़े लिखे भी लंठ। | हैं बहुत से पढ़े लिखे भी लंठ। | ||
− | |||
सुर सबों में दिखा सका न कमाल। | सुर सबों में दिखा सका न कमाल। | ||
− | |||
कम न देखे गये सुरीले कंठ। | कम न देखे गये सुरीले कंठ। | ||
सब दयावान ही नहीं होते। | सब दयावान ही नहीं होते। | ||
− | |||
औ सभी हो सके कभी न भले। | औ सभी हो सके कभी न भले। | ||
− | |||
सैकड़ों ही कठोर हाथों से। | सैकड़ों ही कठोर हाथों से। | ||
+ | फूल से कंठ पर कुठार चले। | ||
− | + | बात मुँह से तब निकल कैसे सके। | |
− | + | ||
− | बात मुँह से तब निकल | + | |
− | + | ||
जब सती का हाथ लोहू में सने। | जब सती का हाथ लोहू में सने। | ||
− | + | फूट पाये कंठ तब कैसे भला। | |
− | फूट पाये कंठ तब | + | |
− | + | ||
कंठ-माला कंठमाला जब बने। | कंठ-माला कंठमाला जब बने। | ||
क्यों हुनर दिखला न मन को मोह लें। | क्यों हुनर दिखला न मन को मोह लें। | ||
− | |||
दूसरों के रूप गुन पर क्यों जलें। | दूसरों के रूप गुन पर क्यों जलें। | ||
− | |||
कोयले से रंग पर ही मस्त रह। | कोयले से रंग पर ही मस्त रह। | ||
− | |||
हैं निराला राग गातीं कोयलें। | हैं निराला राग गातीं कोयलें। | ||
पा सहारा जाति के ही पाँव का। | पा सहारा जाति के ही पाँव का। | ||
− | |||
जाति का है पाँव जम कर बैठता। | जाति का है पाँव जम कर बैठता। | ||
− | |||
जाति ही है जाति की जड़ खोदती। | जाति ही है जाति की जड़ खोदती। | ||
− | |||
हाथ ही है हाथ को तो ऐंठता। | हाथ ही है हाथ को तो ऐंठता। | ||
ढंग से बचते बचाते ही रहें। | ढंग से बचते बचाते ही रहें। | ||
− | |||
बे-बचाये कीन बच पाया कहीं। | बे-बचाये कीन बच पाया कहीं। | ||
− | |||
जो बचावों को नहीं है जानता। | जो बचावों को नहीं है जानता। | ||
− | |||
ब्योंचने से हाथ वह बचता नहीं। | ब्योंचने से हाथ वह बचता नहीं। | ||
कौन बैरी हितू किसी का है। | कौन बैरी हितू किसी का है। | ||
− | |||
है समय काम सब करा लेता। | है समय काम सब करा लेता। | ||
− | |||
तरबतर तेल से किया जिसने। | तरबतर तेल से किया जिसने। | ||
− | |||
है वही हाथ सर कतर देता। | है वही हाथ सर कतर देता। | ||
कर सकी न बुरा बुरी संगति उसे। | कर सकी न बुरा बुरी संगति उसे। | ||
− | |||
दैव दे देता जिसे है बरतरी। | दैव दे देता जिसे है बरतरी। | ||
− | |||
बाँह बदबूदार होती ही नहीं। | बाँह बदबूदार होती ही नहीं। | ||
− | |||
क्यों न होवे काँख बदबू से भरी। | क्यों न होवे काँख बदबू से भरी। | ||
नेक तो नेकियाँ करेंगे ही। | नेक तो नेकियाँ करेंगे ही। | ||
− | |||
क्यों बिपद पर बिपद न हो आती। | क्यों बिपद पर बिपद न हो आती। | ||
− | + | क्या नहीं पाक दूध देती है। | |
− | क्या नहीं पाक | + | पीप से भर गई पकी छाती। |
− | + | ||
− | पीप से भर गई पकी | + | |
है बुरी रुचि ही बना देती बुरा। | है बुरी रुचि ही बना देती बुरा। | ||
− | |||
क्यों सहें लुचपन भली रुचि-थातियाँ। | क्यों सहें लुचपन भली रुचि-थातियाँ। | ||
− | + | लाड़ दिखला दूध पीने के समय। | |
− | लाड़ दिखला | + | |
− | + | ||
क्या नहीं लड़के पकड़ते छातियाँ। | क्या नहीं लड़के पकड़ते छातियाँ। | ||
− | भेद | + | भेद कुछ छोटे बड़े में है नहीं। |
− | + | ||
बान पर-हित की अगर होवे पड़ी। | बान पर-हित की अगर होवे पड़ी। | ||
− | |||
थातियाँ हित की बनी सब दिन रहीं। | थातियाँ हित की बनी सब दिन रहीं। | ||
− | |||
हों भले ही छातियाँ छोटी बड़ी। | हों भले ही छातियाँ छोटी बड़ी। | ||
दैव की करतूत ही करतूत है। | दैव की करतूत ही करतूत है। | ||
− | |||
कब मिटाये अंक माथे के मिटे। | कब मिटाये अंक माथे के मिटे। | ||
− | |||
आज तक तो एक भी छाती नहीं। | आज तक तो एक भी छाती नहीं। | ||
− | |||
हो सकी चौड़ी हथौड़ी के पिटे। | हो सकी चौड़ी हथौड़ी के पिटे। | ||
दुख न सब को सका समान सता। | दुख न सब को सका समान सता। | ||
− | |||
मिस गये फूल लौं सभी न मिसे। | मिस गये फूल लौं सभी न मिसे। | ||
− | |||
वह दिया जाय पीस कितना ही। | वह दिया जाय पीस कितना ही। | ||
− | |||
पाँव बनता नहीं पिसान पिसे। | पाँव बनता नहीं पिसान पिसे। | ||
पीसते लोग हैं निबल को ही। | पीसते लोग हैं निबल को ही। | ||
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गो सबल बार बार खलते हैं। | गो सबल बार बार खलते हैं। | ||
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जब गये फूल ही गये मसले। | जब गये फूल ही गये मसले। | ||
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संग को पाँव कब मसलते हैं। | संग को पाँव कब मसलते हैं। | ||
नीच से नीच क्यों न हो कोई। | नीच से नीच क्यों न हो कोई। | ||
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है न ऊँचे टहल-समय टलते। | है न ऊँचे टहल-समय टलते। | ||
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पाँव जब दुख रहे हमारे हों। | पाँव जब दुख रहे हमारे हों। | ||
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हाथ तब क्या उन्हें नहीं मलते। | हाथ तब क्या उन्हें नहीं मलते। | ||
− | ऐंठ में डूब जो बहुत | + | ऐंठ में डूब जो बहुत बहका। |
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क्यों न उस पर भला बिपद पड़ती। | क्यों न उस पर भला बिपद पड़ती। | ||
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जब गई फूल औ चली इतरा। | जब गई फूल औ चली इतरा। | ||
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किस लिए तब न पंखड़ी झड़ती। | किस लिए तब न पंखड़ी झड़ती। | ||
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00:51, 19 मार्च 2014 के समय का अवतरण
है जिन्हें सूझ, जोड़ से ही, वे।
भिड़ सके लाग डाँट साथ बड़ी।
भूल कर भी लड़ी न भौंहों से।
जब लड़ी आँख साथ आँख लड़ी।
देख कर रंग जाति का बदला।
जाति का रंग है बदल जाता।
देख आँखें हुईं लहू जैसी।
आँख में है लहू उतर आता।
देख दुख से अधीर संगी को।
है जनमसंगिनी लटी पड़ती।
दाढ़ है दाँत के दुखे दुखती।
सिर दुखे आँख है फटी पड़ती।
तब भलाई भूल जाती क्यों नहीं।
जब सचाई ही नहीं भाती रही।
जोत तब कैसे चली जाती नहीं।
जब किसी की आँख ही जाती रही।
कौन आला नाम रख आला बना।
है जहाँ गुन, है निरालापन वहीं।
साँझ फूली या कली फूली फबी।
आँख की फूली फबी फूली नहीं।
एक से जो दिखा पड़े, उनका।
एक ही ढंग है न दिखलाता।
है कमल फूलना भला लगता।
आँख का फूलना नहीं भाता।
काम क्या अंजाम देगा दूसरा।
जब नहीं सकते हमीं अंजाम दे।
दे सकेगा काम सूरज भी तभी।
जब कि अपनी आँख का तिल कामदे।
पड़ बुरों में संगतें पाकर बुरी।
सूझ वाला कब बुराई में फँसा।
देख लो काली पुतलियों में बसे।
आँख के तिल में न कालापन बसा।
तब भला मैली कुचैली औरतें।
क्यों न पायेंगी निराले पूत जन।
आँख की काली कलूटी पुतलियाँ।
जब जनें तिल सा बड़ा न्यारा रतन।
फूट पड़ता है उजाला भी वहाँ।
घोर अँधियाली जहाँ छाई रही।
जगमगा काली पुतलियों में हमें।
जोत वाले तिल जताते हैं यही।
सूझ वाले एक दो ही मिल सके।
और सब अंधे मिले हम को यहाँ।
देखने को देह में तिल हैं न कम।
आँख के तिल से मगर तिल हैं कहाँ।
वह कभी खींच तान में न पड़ा।
है जिसे आन बान की न पड़ी।
मोतियों से बनी लड़ी से कब।
आँसुओं की लड़ी लड़ी झगड़ी।
बीरपन से तन गयों के सामने।
कब जुलाहे जन सके ताना तने।
सूर कहला ले, मगर क्यों सूरमा।
सूरमापन के बिना अंधा बने।
भेख सच्चा दिख पड़ा न हमें।
देख पाये जहाँ तहाँ भेखी।
फूल कब पा सके किसी से हम।
नाक फूली हुई बहुत देखी।
वे सभी क्यारियाँ निराली हैं।
बेलियाँ हैं जहाँ अजीब खिली।
कब सकीें बोल बोलियाँ न्यारी।
बोलती नाक कम हमें न मिली।
जिस जगह पर लगें भले लगने।
चाहिए हम वहीं उमग अटकें।
हैं कहीं पर अगर लटक जाना।
तो लटें गाल पर न क्यों लटकें।
लोग कैसे उलझ सकेंगे तब।
जब हमारी निगाह हो सुलझी।
बान होते हुए है उलझने की।
लट कभी गाल से नहीं उलझी।
है लुनाई फिसल रही जिस पर।
है उसे कम क्या कि कुछ पहने।
गोल सुथरे सुडौल गालों के।
बन गये रूप रंग ही गहने।
कुछ बड़ों से हो न, पर कितनी जगह।
काम करता है बड़ों का मेल ही।
पत बचाती है उसी की चिकनई।
गाल का तिल क्यों न हों बेतेल ही।
सब जगह बात रह नहीं सकती।
बात का बाँधा दें भले ही पुल।
हम रहें क्यों न गुलगुले खाते।
रह सका गाल कब सदा गुलगुल।
जो कि सुख के बने रहे कीड़े।
वे पडे देख दुख उठाते भी।
जो उठें तो उठें सँभल करके।
हैं उठे गाल बैठे जाते भी।
खोजने से भले नहीं मिलते
पर बुरों के सुने कहाँ न गिले।
मिल गये बार बार बू वाले।
मुँह महकते हमें कहीं न मिले।
लत बुरी छूटती नहीं छोड़े।
क्यों न दुख के पड़े रहें पाले।
पान का चाबना कहाँ छूटा।
मुँह छिले और पड़ गये छाले।
जो उन्हें गुन का सहारा मिल सके।
बात तो कब गढ़ नहीं लेते गुनी।
देख तो पाई नहीं पर बारहा।
बात 'बूढ़े मुँह मुँहासे' की सुनी।
दुख मिले चाहे किसी को सुख मिले।
है सभी पाता सदा अपना किया।
आप ही तो वह अँधेरे में पड़ा।
जो किसी मुँह ने बुझा दीया दिया।
जो भरोसे न भाग के सोये।
देव उन से फिरा नहीं फिर कर।
जो रखें जान गिर उठें वे ही।
कब भला दाँत उठ सका गिर कर।
हैं दुखी दीन को सताते सब।
हो न पाई कभी निगहबानी।
लग सका और दाँत में न कभी।
हिल गये दाँत में लगा पानी।
नटखटों से बचे रहें कब तक।
जब उन्हें छोड़ नटखटी न हटी।
क्या हुआ बार बार बच बच कर।
कब भला दाँत से न जीभ कटी।
क्यों किसी बेगुनाह को दुख दें।
छूट क्यों जाँय कर गुनाह सगे।
और के हाथ में लगे तब क्यों।
जब बुरी जीभ में न दाँत लगे।
जो बड़प्पन है न तो कैसे बड़ा।
बन सके कोई बड़ाई पा बड़ी।
देख लो कवि के बनाने से कहाँ।
दाँत की पाँती बनी मोती-लड़ी।
सैकड़ों नेकियाँ किये पर भी।
नीच है ढा बिपत्ति कल लेता।
जीभ है दाँत की टहल करती।
दाँत है जीभ को कुचल देता।
कर सकेंगे हित बने उतना न हित।
कर सकेगा हित सदा जितना सगा।
दे सकेंगे सुख न असली दाँत सा।
देख लो तुम दाँत चाँदी के लगा।
है बुरी लत का लगाना ही बुरा।
बन हठीली क्यों न वह हठ ठानती।
हम अमी भर भर कटोरी नित पियें।
पर चटोरी जीभ कब है मानती।
नित बुराई बुरे रहें करते।
पर भली कब भला रही न भली।
दाँत चाहे चुभें, गड़ें, कुचलें।
पर गले दाँत जीभ कब न गली।
सग दुखों से सगा दुखी होगा।
जल ढलेगा जगह मिले ढालू।
प्यास से जब कि सूखता है मुँह।
जायगा सूख तब न क्यों तालू।
हित करेंगे जिन्हें कि हित भाया।
लोग चाहे बने रहें रूखे।
जीभ क्यों चाट चाट तर न करे।
लब तनिक भी अगर कभी सूखे।
जो भले हैं भला करेंगे ही।
कुछ किसी से कभी बने न बने।
तर किया कब न जीभ ने लब को।
क्या किया जीभ के लिए लब ने।
बस नहीं जिस बात में ही चल सका।
हो गई उस बात में ही बेबसी।
क्यों न भूखा भूख के पाले पड़े।
क्यों न सूखा मुँह हँसे सूखी हँसी।
कर सकेंगी संगतें कैसे असर।
सब तरह की रंगतें जब हों सधी।
लाल कब लब की ललाई से हुई।
कब हँसी उस की मिठाई से बँधी।
बाढ़ परवाह ही नहीं करती।
क्यों न उस पर बिपत्ति हो ढहती।
हम मुड़ा लाख बार दें लेकिन।
मूँछ निकले बिना नहीं रहती।
है सभी खीज खीज जाते तब।
रंज जब जान बूझ हैं देते।
बीसियों बार मनचले लड़के।
मूँछ तो नोच नोच हैं लेते।
हो सके काम जो समय पर ही।
हो सका वह न ठान ठाने से।
पाँव लेवें जमा भले ही हम।
मूँछ जमती नहीं जमाने से।
पट सके, या पट न औरों से सके।
पर कहीं नटखट भला है बन गया।
पड़ सके या पड़ सके पूरी नहीं।
मूँछ भूरी का न भूरापन गया।
कब भलाई से भलाई ही हुई।
सादगी से बात सारी कब सधी।
साध रह जाती सिधाई की नहीं।
देख सीधी दाढ़ियों को भी बँधी।
बाहरी रूप रंग भावों ने।
भीतरी बात है बहुत काढ़ी।
खुल भला क्यों न जाय सीधापन।
देख सीधी खुली हुई दाढ़ी।
गुन तभी पा सके निरालापन।
जब गुनी जन बुरे नहीं होते।
सुर तभी हैं कमाल दिखलाते।
जब गले बेसुरे नहीं होते।
है किसी में अगर नहीं जौहर।
बीर तो वह बना न कर हीले।
सूरमापन कभी नहीं पाता।
काट सूरन गला भले ही ले।
जो बना जैसा बना वैसा रहा।
बन सका कोई बनाने से नहीं।
चितवनें तिरछी सदा तिरछी मिलीं।
गरदनें ऐंठी सदा ऐंठी रहीं।
सब पढ़े पा सके न पूरा ज्ञान।
हैं बहुत से पढ़े लिखे भी लंठ।
सुर सबों में दिखा सका न कमाल।
कम न देखे गये सुरीले कंठ।
सब दयावान ही नहीं होते।
औ सभी हो सके कभी न भले।
सैकड़ों ही कठोर हाथों से।
फूल से कंठ पर कुठार चले।
बात मुँह से तब निकल कैसे सके।
जब सती का हाथ लोहू में सने।
फूट पाये कंठ तब कैसे भला।
कंठ-माला कंठमाला जब बने।
क्यों हुनर दिखला न मन को मोह लें।
दूसरों के रूप गुन पर क्यों जलें।
कोयले से रंग पर ही मस्त रह।
हैं निराला राग गातीं कोयलें।
पा सहारा जाति के ही पाँव का।
जाति का है पाँव जम कर बैठता।
जाति ही है जाति की जड़ खोदती।
हाथ ही है हाथ को तो ऐंठता।
ढंग से बचते बचाते ही रहें।
बे-बचाये कीन बच पाया कहीं।
जो बचावों को नहीं है जानता।
ब्योंचने से हाथ वह बचता नहीं।
कौन बैरी हितू किसी का है।
है समय काम सब करा लेता।
तरबतर तेल से किया जिसने।
है वही हाथ सर कतर देता।
कर सकी न बुरा बुरी संगति उसे।
दैव दे देता जिसे है बरतरी।
बाँह बदबूदार होती ही नहीं।
क्यों न होवे काँख बदबू से भरी।
नेक तो नेकियाँ करेंगे ही।
क्यों बिपद पर बिपद न हो आती।
क्या नहीं पाक दूध देती है।
पीप से भर गई पकी छाती।
है बुरी रुचि ही बना देती बुरा।
क्यों सहें लुचपन भली रुचि-थातियाँ।
लाड़ दिखला दूध पीने के समय।
क्या नहीं लड़के पकड़ते छातियाँ।
भेद कुछ छोटे बड़े में है नहीं।
बान पर-हित की अगर होवे पड़ी।
थातियाँ हित की बनी सब दिन रहीं।
हों भले ही छातियाँ छोटी बड़ी।
दैव की करतूत ही करतूत है।
कब मिटाये अंक माथे के मिटे।
आज तक तो एक भी छाती नहीं।
हो सकी चौड़ी हथौड़ी के पिटे।
दुख न सब को सका समान सता।
मिस गये फूल लौं सभी न मिसे।
वह दिया जाय पीस कितना ही।
पाँव बनता नहीं पिसान पिसे।
पीसते लोग हैं निबल को ही।
गो सबल बार बार खलते हैं।
जब गये फूल ही गये मसले।
संग को पाँव कब मसलते हैं।
नीच से नीच क्यों न हो कोई।
है न ऊँचे टहल-समय टलते।
पाँव जब दुख रहे हमारे हों।
हाथ तब क्या उन्हें नहीं मलते।
ऐंठ में डूब जो बहुत बहका।
क्यों न उस पर भला बिपद पड़ती।
जब गई फूल औ चली इतरा।
किस लिए तब न पंखड़ी झड़ती।