भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आँख / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो (Sharda suman moved page आँख to आँख / हरिऔध)
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
सूर को क्या अगर उगे सूरज।
+
सूर को क्या अगर उगे सूरज।
 
+
 
क्या उसे जाय चाँदनी जो खिल।
 
क्या उसे जाय चाँदनी जो खिल।
 
+
हम अँधेरा तिलोक में पाते।
हम ऍंधोरा तिलोक में पाते।
+
 
+
 
आँख होते अगर न तेरे तिल।
 
आँख होते अगर न तेरे तिल।
  
 
क्या हुआ चौकड़ी अगर भूले।
 
क्या हुआ चौकड़ी अगर भूले।
 
+
लख उछल कूद और छल करना।
लख उछल वू+द और छल करना।
+
 
+
 
है छकाता छलाँग वालों को।
 
है छकाता छलाँग वालों को।
 
 
आँख तेरा छलाँग का भरना।
 
आँख तेरा छलाँग का भरना।
  
 
काम करती रही करोड़ों में।
 
काम करती रही करोड़ों में।
 
 
जब फबी आनबान साथ फबी।
 
जब फबी आनबान साथ फबी।
 
 
और की कोर ही रही दबती।
 
और की कोर ही रही दबती।
 
 
आँख तेरी कभी न कोर दबी।
 
आँख तेरी कभी न कोर दबी।
  
 
काजलों या कालिखों की छूत में।
 
काजलों या कालिखों की छूत में।
 
 
कम अछूतापन नहीं तेरा सना।
 
कम अछूतापन नहीं तेरा सना।
 
 
धूल लेकर के अछूते पाँव की।
 
धूल लेकर के अछूते पाँव की।
 
 
ऐ अछूती आँख तू सुरमा बना।
 
ऐ अछूती आँख तू सुरमा बना।
  
 
वह लुभाता है भला किस को नहीं।
 
वह लुभाता है भला किस को नहीं।
 
 
थी भलाई भी उसी में भर सकी।
 
थी भलाई भी उसी में भर सकी।
 
 
भूल भोलापन गई अपना अगर।
 
भूल भोलापन गई अपना अगर।
 
 
भूल भोली आँख ने तो कम न की।
 
भूल भोली आँख ने तो कम न की।
  
 
क्या करेगी दिखा नुकीलापन।
 
क्या करेगी दिखा नुकीलापन।
 
 
क्या हुआ जो रही रसों बोरी।
 
क्या हुआ जो रही रसों बोरी।
 
 
सब भली करनियों करीनों से।
 
सब भली करनियों करीनों से।
 
 
आँख की कोर जो रही कोरी।
 
आँख की कोर जो रही कोरी।
  
क्या कहें और व+े सभी दुखड़े।
+
क्या कहें और के सभी दुखड़े।
 
+
 
खेल होते हैं और के लेखे।
 
खेल होते हैं और के लेखे।
 
 
फूट जो है उसे बहुत भाती।
 
फूट जो है उसे बहुत भाती।
 
 
आँख तो आप फूट कर देखे।
 
आँख तो आप फूट कर देखे।
  
देख सीधो, सामने हो, फिर न जा।
+
देख सीधे, सामने हो, फिर न जा।
 
+
 
मान जा, बेढंग चालें तू न चल।
 
मान जा, बेढंग चालें तू न चल।
 
 
सोच ले सब दिन किसी की कब चली।
 
सोच ले सब दिन किसी की कब चली।
 
 
एक तिल पर आँख मत इतना मचल।
 
एक तिल पर आँख मत इतना मचल।
  
हम कहें वै+से कि उन में सूझ है।
+
हम कहें कैसे कि उन में सूझ है।
 
+
 
जब न पर-दुख-आँसुओं में वे बहे।
 
जब न पर-दुख-आँसुओं में वे बहे।
 
+
क्या उजाले से भरे हो कर किया।
क्या उँजाले से भरे हो कर किया।
+
आँख के तिल जब अँधेरे में रहे।
 
+
आँख के तिल जब ऍंधोरे में रहे।
+
  
 
हो गईं सब बरौनियाँ उजली।
 
हो गईं सब बरौनियाँ उजली।
 
 
जोत का तार बेतरह टूटा।
 
जोत का तार बेतरह टूटा।
 
 
देख ऊबी न तू छटा बाँकी।
 
देख ऊबी न तू छटा बाँकी।
 
 
आँख तेरा न बाँकपन छूटा।
 
आँख तेरा न बाँकपन छूटा।
  
 
रस निचुड़ता रहा सदा जिससे।
 
रस निचुड़ता रहा सदा जिससे।
 
 
आज उससे सका न आँसू छन।
 
आज उससे सका न आँसू छन।
 
 
आँख अब मत बने रसीली तू।
 
आँख अब मत बने रसीली तू।
 
 
देख तेरा लिया रसीलापन।
 
देख तेरा लिया रसीलापन।
  
 
जब कि निज मुख बना लिया काला।
 
जब कि निज मुख बना लिया काला।
 
 
तब किसी मुँह की क्यों सहे लाली।
 
तब किसी मुँह की क्यों सहे लाली।
 
 
क्या अजब है अगर मरे जल जल।
 
क्या अजब है अगर मरे जल जल।
 
 
कलमुँही आँख काजलों वाली।
 
कलमुँही आँख काजलों वाली।
  
 
मत रहे मस्त रंग में अपने।
 
मत रहे मस्त रंग में अपने।
 
 
मत किसी की बुरी बना दे गत।
 
मत किसी की बुरी बना दे गत।
 
 
जो पिला तू सके न रस-प्याला।
 
जो पिला तू सके न रस-प्याला।
 
 
बावली आँख तो उगल बिख मत।
 
बावली आँख तो उगल बिख मत।
  
 
नहिं बड़ाई जो बड़ों की रख सकी।
 
नहिं बड़ाई जो बड़ों की रख सकी।
 
 
कब रही उसकी उतरती आरती।
 
कब रही उसकी उतरती आरती।
 
 
आँख जब तू चाँद से भिड़ती रही।
 
आँख जब तू चाँद से भिड़ती रही।
 
 
क्यों न तुझ को चाँदनी तब मारती।
 
क्यों न तुझ को चाँदनी तब मारती।
  
 
एक दिन था कि हौसलों में डूब।
 
एक दिन था कि हौसलों में डूब।
 
 
गूँधाती प्यार-मोतियों का हार।
 
गूँधाती प्यार-मोतियों का हार।
 
 
अब लगातार रो रही है आँख।
 
अब लगातार रो रही है आँख।
 
 
टूटता है न आँसुओं का तार।
 
टूटता है न आँसुओं का तार।
  
 
बेबसी में पड़ बहुत दुख सह चुकी।
 
बेबसी में पड़ बहुत दुख सह चुकी।
 
 
कर चुकी सुख को जला कर राख तू।
 
कर चुकी सुख को जला कर राख तू।
 
 
अब उतार रही सही पत को न दे।
 
अब उतार रही सही पत को न दे।
 
 
आँसुओं में डूब उतरा आँख तू।
 
आँसुओं में डूब उतरा आँख तू।
  
 
मत मटक झूठमूठ रूठ न तू।
 
मत मटक झूठमूठ रूठ न तू।
 
 
मत नमक घाव पर छिड़क हो नम।
 
मत नमक घाव पर छिड़क हो नम।
 
+
अब गया ऊब ऊधमों से जी।
अब गया ऊब ऊधामों से जी।
+
ऊधमी आँख मत मचा ऊधम।
 
+
ऊधामी आँख मत मचा ऊधाम।
+
  
 
जो चुका है वार सरबस प्यार पर।
 
जो चुका है वार सरबस प्यार पर।
 
 
तू उसे तेवर बदलकर कर न सर।
 
तू उसे तेवर बदलकर कर न सर।
 
 
दे दिया जिस ने कि चित अपना तुझे।
 
दे दिया जिस ने कि चित अपना तुझे।
 
 
आँख चितवन से उसे तू चित न कर।
 
आँख चितवन से उसे तू चित न कर।
  
 
प्यार करने में कसर की जाय क्यों।
 
प्यार करने में कसर की जाय क्यों।
 
 
है न अच्छा जो रहे जी में कसर।
 
है न अच्छा जो रहे जी में कसर।
 
 
कर सके जो लाड़ तो कर लाड़ तू।
 
कर सके जो लाड़ तो कर लाड़ तू।
 
 
ऐ लड़ाकी आँख लड़ लड़ कर न मर।
 
ऐ लड़ाकी आँख लड़ लड़ कर न मर।
  
 
कौन पानी है गँवाना चाहता।
 
कौन पानी है गँवाना चाहता।
 
 
मछलियाँ पानी बिना जीतीं नहीं।
 
मछलियाँ पानी बिना जीतीं नहीं।
 
 
प्यास पानी के बचाने की बढ़े।
 
प्यास पानी के बचाने की बढ़े।
 
 
आँसू आँसू क्यों भला पीती नहीं।
 
आँसू आँसू क्यों भला पीती नहीं।
  
 
तू उसे भूल कर गुनी मते गुन।
 
तू उसे भूल कर गुनी मते गुन।
 
 
जिस किसी को गुमान हो गुन का।
 
जिस किसी को गुमान हो गुन का।
 
+
जो कि हैं ताकते नहीं सीधे।
जो कि हैं ताकते नहीं सीधो।
+
 
+
 
आँख! मुँह ताक मत कभी उन का।  
 
आँख! मुँह ताक मत कभी उन का।  
 
</poem>
 
</poem>

09:50, 19 मार्च 2014 के समय का अवतरण

सूर को क्या अगर उगे सूरज।
क्या उसे जाय चाँदनी जो खिल।
हम अँधेरा तिलोक में पाते।
आँख होते अगर न तेरे तिल।

क्या हुआ चौकड़ी अगर भूले।
लख उछल कूद और छल करना।
है छकाता छलाँग वालों को।
आँख तेरा छलाँग का भरना।

काम करती रही करोड़ों में।
जब फबी आनबान साथ फबी।
और की कोर ही रही दबती।
आँख तेरी कभी न कोर दबी।

काजलों या कालिखों की छूत में।
कम अछूतापन नहीं तेरा सना।
धूल लेकर के अछूते पाँव की।
ऐ अछूती आँख तू सुरमा बना।

वह लुभाता है भला किस को नहीं।
थी भलाई भी उसी में भर सकी।
भूल भोलापन गई अपना अगर।
भूल भोली आँख ने तो कम न की।

क्या करेगी दिखा नुकीलापन।
क्या हुआ जो रही रसों बोरी।
सब भली करनियों करीनों से।
आँख की कोर जो रही कोरी।

क्या कहें और के सभी दुखड़े।
खेल होते हैं और के लेखे।
फूट जो है उसे बहुत भाती।
आँख तो आप फूट कर देखे।

देख सीधे, सामने हो, फिर न जा।
मान जा, बेढंग चालें तू न चल।
सोच ले सब दिन किसी की कब चली।
एक तिल पर आँख मत इतना मचल।

हम कहें कैसे कि उन में सूझ है।
जब न पर-दुख-आँसुओं में वे बहे।
क्या उजाले से भरे हो कर किया।
आँख के तिल जब अँधेरे में रहे।

हो गईं सब बरौनियाँ उजली।
जोत का तार बेतरह टूटा।
देख ऊबी न तू छटा बाँकी।
आँख तेरा न बाँकपन छूटा।

रस निचुड़ता रहा सदा जिससे।
आज उससे सका न आँसू छन।
आँख अब मत बने रसीली तू।
देख तेरा लिया रसीलापन।

जब कि निज मुख बना लिया काला।
तब किसी मुँह की क्यों सहे लाली।
क्या अजब है अगर मरे जल जल।
कलमुँही आँख काजलों वाली।

मत रहे मस्त रंग में अपने।
मत किसी की बुरी बना दे गत।
जो पिला तू सके न रस-प्याला।
बावली आँख तो उगल बिख मत।

नहिं बड़ाई जो बड़ों की रख सकी।
कब रही उसकी उतरती आरती।
आँख जब तू चाँद से भिड़ती रही।
क्यों न तुझ को चाँदनी तब मारती।

एक दिन था कि हौसलों में डूब।
गूँधाती प्यार-मोतियों का हार।
अब लगातार रो रही है आँख।
टूटता है न आँसुओं का तार।

बेबसी में पड़ बहुत दुख सह चुकी।
कर चुकी सुख को जला कर राख तू।
अब उतार रही सही पत को न दे।
आँसुओं में डूब उतरा आँख तू।

मत मटक झूठमूठ रूठ न तू।
मत नमक घाव पर छिड़क हो नम।
अब गया ऊब ऊधमों से जी।
ऊधमी आँख मत मचा ऊधम।

जो चुका है वार सरबस प्यार पर।
तू उसे तेवर बदलकर कर न सर।
दे दिया जिस ने कि चित अपना तुझे।
आँख चितवन से उसे तू चित न कर।

प्यार करने में कसर की जाय क्यों।
है न अच्छा जो रहे जी में कसर।
कर सके जो लाड़ तो कर लाड़ तू।
ऐ लड़ाकी आँख लड़ लड़ कर न मर।

कौन पानी है गँवाना चाहता।
मछलियाँ पानी बिना जीतीं नहीं।
प्यास पानी के बचाने की बढ़े।
आँसू आँसू क्यों भला पीती नहीं।

तू उसे भूल कर गुनी मते गुन।
जिस किसी को गुमान हो गुन का।
जो कि हैं ताकते नहीं सीधे।
आँख! मुँह ताक मत कभी उन का।