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"दाँत / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर

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हो बली, रख डीलडौल पहाड़ सा।
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बस बड़े घर में, समझ होते बड़ी।
 
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हाथियों को दाँत काढ़े देख कर।
 
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दाबनी दाँतों तले उँगली पड़ी।
 
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जब कि करतूत के लगे घस्से।
 
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तब भला किस तरह न वे घिसते।
 
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पीसते और को सदा जब थे।
 
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दाँत कैसे भला न तब पिसते।
दाँत वै+से भला न तब पिसते।
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है निराली चमक दमक तुम में।
 
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सब रसों बीच हो तुम्हीं सनते।
 
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दाँत यह कुन्दपन तुम्हारा है।
दाँत यह वु+न्दपन तुम्हारा है।
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जो रहे कुन्द की कली बनते।
 
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रस किसी को भला चखाते क्या।
 
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हो बहाते लहू बिना जाने।
 
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दाँत अनार तुम्हें न क्यों मिलता।
 
दाँत अनार तुम्हें न क्यों मिलता।
 
 
हो अनूठे अनार के दाने।
 
हो अनूठे अनार के दाने।
  
 
क्या लिया बार बार मोती बन।
 
क्या लिया बार बार मोती बन।
 
 
लोभ करते मगर नहीं थकते।
 
लोभ करते मगर नहीं थकते।
 
 
लाल हो लाख बार लोहू से।
 
लाल हो लाख बार लोहू से।
 
 
दाँत तुम लाल बन नहीं सकते।
 
दाँत तुम लाल बन नहीं सकते।
  
 
आज जिससे हो वही जो बद बने।
 
आज जिससे हो वही जो बद बने।
 
 
दूसरों से हो सके तो आस क्या।
 
दूसरों से हो सके तो आस क्या।
 
 
दाँत जब तुम जीभ औ लब में चुभे।
 
दाँत जब तुम जीभ औ लब में चुभे।
 
 
पास वालों का किया तब पास क्या।
 
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लाल या काले बनोगे क्यों न तब।
 
लाल या काले बनोगे क्यों न तब।
 
 
जब कि मिस्सी लाल या काली मली।
 
जब कि मिस्सी लाल या काली मली।
 
 
दाँत क्या रंगीन बनते तुम रहे।
 
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सादगी रंगीनियों से है भली।
 
सादगी रंगीनियों से है भली।
  
 
वह बनी क्यों रहे न सोने की।
 
वह बनी क्यों रहे न सोने की।
 
 
तुम उसे फेंक दो न ढील करो।
 
तुम उसे फेंक दो न ढील करो।
 
 
लीक है वह लगा रही तुम को।
 
लीक है वह लगा रही तुम को।
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दाँत कुछ कील की सबील करो।
  
दाँत वु+छ कील की सबील करो।
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हैं नहीं चुभने, कुचलने, कूँचने।
 
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हैं नहीं चुभने, वु+चलने, वू+ँचने।
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छेदने औ बेधाने ही के गिले।
 
छेदने औ बेधाने ही के गिले।
 
 
दाँत सारे औगुनों से हो भरे।
 
दाँत सारे औगुनों से हो भरे।
 
 
तुम बिगड़ते औ उखड़ते भी मिले।  
 
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10:42, 19 मार्च 2014 के समय का अवतरण

हो बली, रख डीलडौल पहाड़ सा।
बस बड़े घर में, समझ होते बड़ी।
हाथियों को दाँत काढ़े देख कर।
दाबनी दाँतों तले उँगली पड़ी।

जब कि करतूत के लगे घस्से।
तब भला किस तरह न वे घिसते।
पीसते और को सदा जब थे।
दाँत कैसे भला न तब पिसते।

है निराली चमक दमक तुम में।
सब रसों बीच हो तुम्हीं सनते।
दाँत यह कुन्दपन तुम्हारा है।
जो रहे कुन्द की कली बनते।

रस किसी को भला चखाते क्या।
हो बहाते लहू बिना जाने।
दाँत अनार तुम्हें न क्यों मिलता।
हो अनूठे अनार के दाने।

क्या लिया बार बार मोती बन।
लोभ करते मगर नहीं थकते।
लाल हो लाख बार लोहू से।
दाँत तुम लाल बन नहीं सकते।

आज जिससे हो वही जो बद बने।
दूसरों से हो सके तो आस क्या।
दाँत जब तुम जीभ औ लब में चुभे।
पास वालों का किया तब पास क्या।

लाल या काले बनोगे क्यों न तब।
जब कि मिस्सी लाल या काली मली।
दाँत क्या रंगीन बनते तुम रहे।
सादगी रंगीनियों से है भली।

वह बनी क्यों रहे न सोने की।
तुम उसे फेंक दो न ढील करो।
लीक है वह लगा रही तुम को।
दाँत कुछ कील की सबील करो।

हैं नहीं चुभने, कुचलने, कूँचने।
छेदने औ बेधाने ही के गिले।
दाँत सारे औगुनों से हो भरे।
तुम बिगड़ते औ उखड़ते भी मिले।