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"होठ / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर

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पान ने लाल और मिस्सी ने।
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होठ तुम को बना दिया काला।
 
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क्या रहा, जब ढले उसी रंग में।
क्या रहा, जब ढले उसी रँग में।
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रंग में जिस तुमें गया ढाला।
 
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जब कि उन में न रह गई लस्सी।
 
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वे भला किस तरह सटेंगे तब।
 
वे भला किस तरह सटेंगे तब।
 
 
नेह का नाम भी न जब लेंगे।
 
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होठ कैसे नहीं फटेंगे तब।
होठ वै+से नहीं फटेंगे तब।
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वह भली होवे मगर पपड़ी पड़े।
 
वह भली होवे मगर पपड़ी पड़े।
 
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दूध बड़ का ही हुआ 'हित' कर जसी।
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होठ पपड़ाया हुआ ले क्या करे।
 
होठ पपड़ाया हुआ ले क्या करे।
 
 
चाँदनी जैसी अमी डूबी हँसी।
 
चाँदनी जैसी अमी डूबी हँसी।
  
 
चाहिए था चाँदनी जैसी छिटक।
 
चाहिए था चाँदनी जैसी छिटक।
 
 
वह बना देती किसी की आँख तर।
 
वह बना देती किसी की आँख तर।
 
 
कर उसे बेकार बिजली कौंधा लौं।
 
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क्या दिखाई मुसकुराहट होठ पर।
क्या दिखाई मुसवु+राहट होठ पर।
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जब रहे अनमोल लाली से लसे।
 
जब रहे अनमोल लाली से लसे।
 
 
पीक में वे पान की तब क्यों सने।
 
पीक में वे पान की तब क्यों सने।
 
 
जब ललाये वे ललाई के लिए।
 
जब ललाये वे ललाई के लिए।
 
 
तब भला लब लाल मूँगे क्या बने।
 
तब भला लब लाल मूँगे क्या बने।
  
 
लालची बन और लालच कर बहुत।
 
लालची बन और लालच कर बहुत।
 
 
मान की डाली किसी को कब मिली।
 
मान की डाली किसी को कब मिली।
 
 
तब रहे क्यों लाल बनते पान से।
 
तब रहे क्यों लाल बनते पान से।
 
 
लब तुम्हें लाली निराली जब मिली।
 
लब तुम्हें लाली निराली जब मिली।
  
 
दो बना और को न बेचारा।
 
दो बना और को न बेचारा।
 
 
तुम बुरी बात से बचो हिचको।
 
तुम बुरी बात से बचो हिचको।
 
 
खो किसी की बची बचाई पत।
 
खो किसी की बची बचाई पत।
 
 
होठ तुम बार बार मत बिचको।
 
होठ तुम बार बार मत बिचको।
  
 
जब मिठाई की बदौलत ही तुम्हें।
 
जब मिठाई की बदौलत ही तुम्हें।
 
 
बोल कड़वे भी रहे लगते भले।
 
बोल कड़वे भी रहे लगते भले।
 
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मुसकुराहट के बहाने होठ तुम।
मुसवु+राहट के बहाने होठ तुम।
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तब अमी-धारा बहाने क्या चले।  
 
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11:12, 19 मार्च 2014 के समय का अवतरण

पान ने लाल और मिस्सी ने।
होठ तुम को बना दिया काला।
क्या रहा, जब ढले उसी रंग में।
रंग में जिस तुमें गया ढाला।

जब कि उन में न रह गई लस्सी।
वे भला किस तरह सटेंगे तब।
नेह का नाम भी न जब लेंगे।
होठ कैसे नहीं फटेंगे तब।

वह भली होवे मगर पपड़ी पड़े।
दूध बड़ का ही हुआ 'हित' कर जसी।
होठ पपड़ाया हुआ ले क्या करे।
चाँदनी जैसी अमी डूबी हँसी।

चाहिए था चाँदनी जैसी छिटक।
वह बना देती किसी की आँख तर।
कर उसे बेकार बिजली कौंधा लौं।
क्या दिखाई मुसकुराहट होठ पर।

जब रहे अनमोल लाली से लसे।
पीक में वे पान की तब क्यों सने।
जब ललाये वे ललाई के लिए।
तब भला लब लाल मूँगे क्या बने।

लालची बन और लालच कर बहुत।
मान की डाली किसी को कब मिली।
तब रहे क्यों लाल बनते पान से।
लब तुम्हें लाली निराली जब मिली।

दो बना और को न बेचारा।
तुम बुरी बात से बचो हिचको।
खो किसी की बची बचाई पत।
होठ तुम बार बार मत बिचको।

जब मिठाई की बदौलत ही तुम्हें।
बोल कड़वे भी रहे लगते भले।
मुसकुराहट के बहाने होठ तुम।
तब अमी-धारा बहाने क्या चले।