भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ललक / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) छो (Sharda suman moved page ललक to ललक / हरिऔध) |
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | बीत पाते नहीं दुखों के दिन। | |
− | + | कब तलक दुख सहें कुढ़ें काँखें। | |
− | कब तलक दुख सहें | + | |
− | + | ||
देखने के लिए सुखों के दिन। | देखने के लिए सुखों के दिन। | ||
− | |||
है हमारी तरस रहीं आँखें। | है हमारी तरस रहीं आँखें। | ||
सुख-झलक ही देख लेने के लिए। | सुख-झलक ही देख लेने के लिए। | ||
− | |||
आज दिन हैं रात-दिन रहते खड़े। | आज दिन हैं रात-दिन रहते खड़े। | ||
− | |||
बात हम अपने ललक की क्या कहें। | बात हम अपने ललक की क्या कहें। | ||
− | |||
डालते हैं नित पलक के पाँवड़े। | डालते हैं नित पलक के पाँवड़े। | ||
</poem> | </poem> |
09:04, 20 मार्च 2014 के समय का अवतरण
बीत पाते नहीं दुखों के दिन।
कब तलक दुख सहें कुढ़ें काँखें।
देखने के लिए सुखों के दिन।
है हमारी तरस रहीं आँखें।
सुख-झलक ही देख लेने के लिए।
आज दिन हैं रात-दिन रहते खड़े।
बात हम अपने ललक की क्या कहें।
डालते हैं नित पलक के पाँवड़े।