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"बूते की बात / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर

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चाहिए आँखें खुली रखना सदा।
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चाहिए आँखें खुली रखना सदा।
 
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दुख सकेंगे टल नहीं आँखें ढके।
 
दुख सकेंगे टल नहीं आँखें ढके।
 
 
सूख जाते हैं बिपद को देख जब।
 
सूख जाते हैं बिपद को देख जब।
 
 
किस तरह से सूख तब आँसू सके।
 
किस तरह से सूख तब आँसू सके।
  
 
जाँयगे पेच पाच पड़ ढीले।
 
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छेद देगा कुढंग बरछी ले।
छेद देगा वु+ढंग बरछी ले।
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खोज कर के नये नये हीले।
 
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आँख से आँख लड़ भले ही ले।
 
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देख कर के ही किसी ने क्या किया।
 
देख कर के ही किसी ने क्या किया।
 
 
साँसतें सह जातियाँ कितनी मुईं।
 
साँसतें सह जातियाँ कितनी मुईं।
 
 
तब हुआ क्या बाहरी आँखें बचे।
 
तब हुआ क्या बाहरी आँखें बचे।
 
 
जब कि आँखें भीतरी अंधी हुईं।
 
जब कि आँखें भीतरी अंधी हुईं।
  
 
हो बुरा उन कचाइयों का जो।
 
हो बुरा उन कचाइयों का जो।
 
 
पत उतारे बिना नहीं मुड़तीं।
 
पत उतारे बिना नहीं मुड़तीं।
 
 
जब हवा आप हो गये हम तो।
 
जब हवा आप हो गये हम तो।
 
 
क्यों न मुँह पर हवाइयाँ उड़तीं।
 
क्यों न मुँह पर हवाइयाँ उड़तीं।
  
 
आ रही हैं जम्हाइयाँ यों क्यों।
 
आ रही हैं जम्हाइयाँ यों क्यों।
 
 
काम क्यों बीर की तरह न करें।
 
काम क्यों बीर की तरह न करें।
 
 
हैं उबरते अगर उबर लेवें।
 
हैं उबरते अगर उबर लेवें।
 
 
साँस हम ऊब ऊब कर न भरें।
 
साँस हम ऊब ऊब कर न भरें।
  
 
और बातें भूल दें तो भूल दें।
 
और बातें भूल दें तो भूल दें।
 
 
चोट जी की किस तरह है भूलती।
 
चोट जी की किस तरह है भूलती।
 
 
हैं बरसते फूल साँसत में नहीं।
 
हैं बरसते फूल साँसत में नहीं।
 
 
फिर किसी की साँस क्यों है फूलती।
 
फिर किसी की साँस क्यों है फूलती।
  
 
मर मिटें पर काम से मोड़ें न मुँह।
 
मर मिटें पर काम से मोड़ें न मुँह।
 
 
आ बने जी पर मगर सच्ची कहें।
 
आ बने जी पर मगर सच्ची कहें।
 
 
साँसतें सह छोड़ दें साहस नहीं।
 
साँसतें सह छोड़ दें साहस नहीं।
 
 
साँस रहते तक उबरते हम रहें।
 
साँस रहते तक उबरते हम रहें।
  
 
हो भला जिस से वही जी से करें।
 
हो भला जिस से वही जी से करें।
 
 
पीटते हैं हम पुरानी लीक क्या।
 
पीटते हैं हम पुरानी लीक क्या।
 
 
साँस क्यों लें जाति-हित करते चलें।
 
साँस क्यों लें जाति-हित करते चलें।
 
 
साँस आई या न आई ठीक क्या।
 
साँस आई या न आई ठीक क्या।
  
 
लोक-हित के लिए बढ़े जब तो।
 
लोक-हित के लिए बढ़े जब तो।
 
 
पाँव पीछे कभी न टल जावे।
 
पाँव पीछे कभी न टल जावे।
 
 
हम भली राह से निकल न भगें।
 
हम भली राह से निकल न भगें।
 
 
क्यों नहीं साँस ही निकल जावे।
 
क्यों नहीं साँस ही निकल जावे।
  
 
सब तरह से न जाँय जुट जब तक।
 
सब तरह से न जाँय जुट जब तक।
 
 
जीत तब तक न हाथ आती है।
 
जीत तब तक न हाथ आती है।
 
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आस कैसे न टूट जाती तब।
आस वै+से न टूट जाती तब।
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साँस जब टूट टूट जाती है।
 
साँस जब टूट टूट जाती है।
  
 
खुल कहें और बार बार कहें।
 
खुल कहें और बार बार कहें।
 
 
बात वाजिब सदा कही जावे।
 
बात वाजिब सदा कही जावे।
 
 
बन्द तब तक न मुँह करें अपना।
 
बन्द तब तक न मुँह करें अपना।
 
 
साँस जब तक न बन्द हो जावे।
 
साँस जब तक न बन्द हो जावे।
  
 
जब निकल ऐंठ ही गई सारी।
 
जब निकल ऐंठ ही गई सारी।
 
 
तब भला मूँछ किस लिए ऐंठें।
 
तब भला मूँछ किस लिए ऐंठें।
 
 
बैठती आन बान से तो क्यों।
 
बैठती आन बान से तो क्यों।
 
 
बात बैठी अगर चपत बैठे।
 
बात बैठी अगर चपत बैठे।
  
 
बाँह के बल को समझ को बूझ को।
 
बाँह के बल को समझ को बूझ को।
 
 
दूसरों ने तो बँटाया है नहीं।
 
दूसरों ने तो बँटाया है नहीं।
 
 
धान किसी का देख काटें होठ क्यों।
 
धान किसी का देख काटें होठ क्यों।
 
 
हाथ तो हम ने कटाया है नहीं।
 
हाथ तो हम ने कटाया है नहीं।
  
 
कौड़ियों पर किस लिए हम दाँत दें।
 
कौड़ियों पर किस लिए हम दाँत दें।
 
 
है हमारा भाग तो फूटा नहीं।
 
है हमारा भाग तो फूटा नहीं।
 
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क्या हुआ जो कुछ हमें टोटा हुआ।
क्या हुआ जो वु+छ हमें टोटा हुआ।
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है हमारा हाथ तो टूटा नहीं।
 
है हमारा हाथ तो टूटा नहीं।
  
 
जो सदा हैं बखेरते काँटे।
 
जो सदा हैं बखेरते काँटे।
 
 
दे सके वे न फूल के दोने।
 
दे सके वे न फूल के दोने।
 
 
क्यों भला काम लें न ढाढ़स से।
 
क्यों भला काम लें न ढाढ़स से।
 
 
क्यों लगें ढाढ़ मार कर रोने।
 
क्यों लगें ढाढ़ मार कर रोने।
  
 
हौसलों के बने रहें पुतले।
 
हौसलों के बने रहें पुतले।
 
 
हार हिम्मत कभी न हम हारें।
 
हार हिम्मत कभी न हम हारें।
 
 
काम मरदानगी दिखा साधों।
 
काम मरदानगी दिखा साधों।
 
 
मार मैदान लें, न मन मारें।
 
मार मैदान लें, न मन मारें।
  
 
भेद दिल का उन्हें नहीं मिलता।
 
भेद दिल का उन्हें नहीं मिलता।
 
 
हैं नहीं जो टटोल दिल पाते।
 
हैं नहीं जो टटोल दिल पाते।
 
 
पेट की बात जानना है तो।
 
पेट की बात जानना है तो।
 
 
पेट में पैठ क्यों नहीं जाते।
 
पेट में पैठ क्यों नहीं जाते।
 
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10:15, 20 मार्च 2014 के समय का अवतरण

चाहिए आँखें खुली रखना सदा।
दुख सकेंगे टल नहीं आँखें ढके।
सूख जाते हैं बिपद को देख जब।
किस तरह से सूख तब आँसू सके।

जाँयगे पेच पाच पड़ ढीले।
छेद देगा कुढंग बरछी ले।
खोज कर के नये नये हीले।
आँख से आँख लड़ भले ही ले।

देख कर के ही किसी ने क्या किया।
साँसतें सह जातियाँ कितनी मुईं।
तब हुआ क्या बाहरी आँखें बचे।
जब कि आँखें भीतरी अंधी हुईं।

हो बुरा उन कचाइयों का जो।
पत उतारे बिना नहीं मुड़तीं।
जब हवा आप हो गये हम तो।
क्यों न मुँह पर हवाइयाँ उड़तीं।

आ रही हैं जम्हाइयाँ यों क्यों।
काम क्यों बीर की तरह न करें।
हैं उबरते अगर उबर लेवें।
साँस हम ऊब ऊब कर न भरें।

और बातें भूल दें तो भूल दें।
चोट जी की किस तरह है भूलती।
हैं बरसते फूल साँसत में नहीं।
फिर किसी की साँस क्यों है फूलती।

मर मिटें पर काम से मोड़ें न मुँह।
आ बने जी पर मगर सच्ची कहें।
साँसतें सह छोड़ दें साहस नहीं।
साँस रहते तक उबरते हम रहें।

हो भला जिस से वही जी से करें।
पीटते हैं हम पुरानी लीक क्या।
साँस क्यों लें जाति-हित करते चलें।
साँस आई या न आई ठीक क्या।

लोक-हित के लिए बढ़े जब तो।
पाँव पीछे कभी न टल जावे।
हम भली राह से निकल न भगें।
क्यों नहीं साँस ही निकल जावे।

सब तरह से न जाँय जुट जब तक।
जीत तब तक न हाथ आती है।
आस कैसे न टूट जाती तब।
साँस जब टूट टूट जाती है।

खुल कहें और बार बार कहें।
बात वाजिब सदा कही जावे।
बन्द तब तक न मुँह करें अपना।
साँस जब तक न बन्द हो जावे।

जब निकल ऐंठ ही गई सारी।
तब भला मूँछ किस लिए ऐंठें।
बैठती आन बान से तो क्यों।
बात बैठी अगर चपत बैठे।

बाँह के बल को समझ को बूझ को।
दूसरों ने तो बँटाया है नहीं।
धान किसी का देख काटें होठ क्यों।
हाथ तो हम ने कटाया है नहीं।

कौड़ियों पर किस लिए हम दाँत दें।
है हमारा भाग तो फूटा नहीं।
क्या हुआ जो कुछ हमें टोटा हुआ।
है हमारा हाथ तो टूटा नहीं।

जो सदा हैं बखेरते काँटे।
दे सके वे न फूल के दोने।
क्यों भला काम लें न ढाढ़स से।
क्यों लगें ढाढ़ मार कर रोने।

हौसलों के बने रहें पुतले।
हार हिम्मत कभी न हम हारें।
काम मरदानगी दिखा साधों।
मार मैदान लें, न मन मारें।

भेद दिल का उन्हें नहीं मिलता।
हैं नहीं जो टटोल दिल पाते।
पेट की बात जानना है तो।
पेट में पैठ क्यों नहीं जाते।