"परख / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर
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− | खोट वैसे न खूँट में | + | खोट वैसे न खूँट में बँधती। |
मन गया है खुटाइयों में सन। | मन गया है खुटाइयों में सन। | ||
बान क्यों काटवूट की न पड़े। | बान क्यों काटवूट की न पड़े। | ||
है भरा वूट वूट पाजीपन। | है भरा वूट वूट पाजीपन। | ||
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जब पड़ी बान आग बोने की। | जब पड़ी बान आग बोने की। | ||
आग वैसे भला नहीं बोता। | आग वैसे भला नहीं बोता। | ||
मिल सका ढंग ढंगवालों में। | मिल सका ढंग ढंगवालों में। | ||
ढंग बेढंग में नहीं होता। | ढंग बेढंग में नहीं होता। | ||
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जूठ खाना जिसे रहा रुचता। | जूठ खाना जिसे रहा रुचता। | ||
किस लिए वह न खायगा जूठा। | किस लिए वह न खायगा जूठा। | ||
है उसे झूठ बोलना भाता। | है उसे झूठ बोलना भाता। | ||
बोलता झूठ क्यों नहीं झूठा। | बोलता झूठ क्यों नहीं झूठा। | ||
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जा रही है लाज तो जाये चली। | जा रही है लाज तो जाये चली। | ||
लाज जाने से भला वह कब डरा। | लाज जाने से भला वह कब डरा। | ||
घट रहा है मान तो घटता रहे। | घट रहा है मान तो घटता रहे। | ||
है निघरघटपन निघरघट में भरा। | है निघरघटपन निघरघट में भरा। | ||
+ | |||
चूल से चूल हैं मिला देते। | चूल से चूल हैं मिला देते। | ||
रंगतें ढंग से बदलते हैं। | रंगतें ढंग से बदलते हैं। | ||
चाल चालाकियाँ भरी कितनी। | चाल चालाकियाँ भरी कितनी। | ||
कब न चालाक लोग चलते हैं। | कब न चालाक लोग चलते हैं। | ||
+ | |||
पास तब वैसे फटक पाती समझ। | पास तब वैसे फटक पाती समझ। | ||
जब कि जी नासमझियों में ही सने। | जब कि जी नासमझियों में ही सने। | ||
तब गले वैसे न उल्लूपन पड़े। | तब गले वैसे न उल्लूपन पड़े। | ||
उल्लुओं में बैठ जब उल्लू बने। | उल्लुओं में बैठ जब उल्लू बने। | ||
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किस तरह बेऐब कोई बन सके। | किस तरह बेऐब कोई बन सके। | ||
बेतरह हैं ऐब पीछे जब लगे। | बेतरह हैं ऐब पीछे जब लगे। | ||
कम नहीं उल्लू कहाना ही रहा। | कम नहीं उल्लू कहाना ही रहा। | ||
काठ के उल्लू कहाने अब लगे। | काठ के उल्लू कहाने अब लगे। | ||
− | बात | + | |
+ | बात बतलाई सुनें, समझें, करें। | ||
कर न बेसमझी समझ की जड़ खनें। | कर न बेसमझी समझ की जड़ खनें। | ||
जो बदा है क्यों बदा मानें उसे। | जो बदा है क्यों बदा मानें उसे। | ||
हम न बोदापन दिखा बोदे बनें। | हम न बोदापन दिखा बोदे बनें। | ||
+ | |||
बाल की खाल काढ़ खल पन कर। | बाल की खाल काढ़ खल पन कर। | ||
खल किसे बेतरह नहीं खलते। | खल किसे बेतरह नहीं खलते। | ||
चाल चल छील छील बातों को। | चाल चल छील छील बातों को। | ||
छल छली कर किसे नहीं छलते। | छल छली कर किसे नहीं छलते। | ||
+ | |||
पेच भर पेच पाच करने में। | पेच भर पेच पाच करने में। | ||
क्यों सभी का न सिर धारा होगा। | क्यों सभी का न सिर धारा होगा। |
18:34, 23 मार्च 2014 के समय का अवतरण
खोट वैसे न खूँट में बँधती।
मन गया है खुटाइयों में सन।
बान क्यों काटवूट की न पड़े।
है भरा वूट वूट पाजीपन।
जब पड़ी बान आग बोने की।
आग वैसे भला नहीं बोता।
मिल सका ढंग ढंगवालों में।
ढंग बेढंग में नहीं होता।
जूठ खाना जिसे रहा रुचता।
किस लिए वह न खायगा जूठा।
है उसे झूठ बोलना भाता।
बोलता झूठ क्यों नहीं झूठा।
जा रही है लाज तो जाये चली।
लाज जाने से भला वह कब डरा।
घट रहा है मान तो घटता रहे।
है निघरघटपन निघरघट में भरा।
चूल से चूल हैं मिला देते।
रंगतें ढंग से बदलते हैं।
चाल चालाकियाँ भरी कितनी।
कब न चालाक लोग चलते हैं।
पास तब वैसे फटक पाती समझ।
जब कि जी नासमझियों में ही सने।
तब गले वैसे न उल्लूपन पड़े।
उल्लुओं में बैठ जब उल्लू बने।
किस तरह बेऐब कोई बन सके।
बेतरह हैं ऐब पीछे जब लगे।
कम नहीं उल्लू कहाना ही रहा।
काठ के उल्लू कहाने अब लगे।
बात बतलाई सुनें, समझें, करें।
कर न बेसमझी समझ की जड़ खनें।
जो बदा है क्यों बदा मानें उसे।
हम न बोदापन दिखा बोदे बनें।
बाल की खाल काढ़ खल पन कर।
खल किसे बेतरह नहीं खलते।
चाल चल छील छील बातों को।
छल छली कर किसे नहीं छलते।
पेच भर पेच पाच करने में।
क्यों सभी का न सिर धारा होगा।
है भरी काट पीट रग रग में।
क्यों न कपटी कपट भरा होगा।