"ताली / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर
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− | + | तो भलाई क्या हुई रगड़े बढ़े। | |
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नींव झगड़े की अगर डाली गई। | नींव झगड़े की अगर डाली गई। | ||
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हाथ के तोते किसी के जब उड़े। | हाथ के तोते किसी के जब उड़े। | ||
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तब बजाई किस लिए ताली गई। | तब बजाई किस लिए ताली गई। | ||
झूठ के सामने झुके सिर क्यों। | झूठ के सामने झुके सिर क्यों। | ||
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फूल से लोग क्यों उसे न सजें। | फूल से लोग क्यों उसे न सजें। | ||
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सच कहें, क्यों न गालियाँ खायें। | सच कहें, क्यों न गालियाँ खायें। | ||
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तालियाँ क्यों न बार बार बजें। | तालियाँ क्यों न बार बार बजें। | ||
प्यालियाँ जो हैं बड़े आनन्द की। | प्यालियाँ जो हैं बड़े आनन्द की। | ||
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डालियाँ वे क्यों कपट छल की बनें। | डालियाँ वे क्यों कपट छल की बनें। | ||
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भर बहुत मैले मनों के मैल से। | भर बहुत मैले मनों के मैल से। | ||
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तालियाँ क्यों नालियाँ मल की बनें। | तालियाँ क्यों नालियाँ मल की बनें। | ||
हितभरी बात जग-हितु की सुन। | हितभरी बात जग-हितु की सुन। | ||
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भर गई लोक-भक्ति की थाली। | भर गई लोक-भक्ति की थाली। | ||
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सज उठी फूल से सजी पगड़ी। | सज उठी फूल से सजी पगड़ी। | ||
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बज उठी धूम धाम से ताली। | बज उठी धूम धाम से ताली। | ||
धूम से बेढंगपन है चल रहा। | धूम से बेढंगपन है चल रहा। | ||
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हैं नहीं बेहूदगी आँखें खुली। | हैं नहीं बेहूदगी आँखें खुली। | ||
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तोड़ देने के लिए हित की कमर। | तोड़ देने के लिए हित की कमर। | ||
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तालियों की तड़तड़ाहट है तुली। | तालियों की तड़तड़ाहट है तुली। | ||
डालियाँ अब वे न फूलों की रहीं। | डालियाँ अब वे न फूलों की रहीं। | ||
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भर गईं उन की धुनों में गालियाँ। | भर गईं उन की धुनों में गालियाँ। | ||
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तूल हैं तलबेलियों को दे रही। | तूल हैं तलबेलियों को दे रही। | ||
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तौल कर बजती नहीं अब तालियाँ। | तौल कर बजती नहीं अब तालियाँ। | ||
तब भला वह किस लिए बजती रही। | तब भला वह किस लिए बजती रही। | ||
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लोग उसको जब न रस-डाली कहें। | लोग उसको जब न रस-डाली कहें। | ||
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खोल पाई जब न ताला प्यार का। | खोल पाई जब न ताला प्यार का। | ||
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तब उसे हम किस तरह ताली कहें। | तब उसे हम किस तरह ताली कहें। | ||
देस को, जाति को समाजों को। | देस को, जाति को समाजों को। | ||
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क्यों कलह-फूल से सजाते हैं। | क्यों कलह-फूल से सजाते हैं। | ||
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लाग की बेलियों तले बैठे। | लाग की बेलियों तले बैठे। | ||
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लोग क्यों तालियाँ बजाते हैं। | लोग क्यों तालियाँ बजाते हैं। | ||
लाग से वे जल रहे हैं तो जलें। | लाग से वे जल रहे हैं तो जलें। | ||
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क्यों जला घर सुन रहे हैं गालियाँ। | क्यों जला घर सुन रहे हैं गालियाँ। | ||
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जी जला कर जाति के सिरताज का। | जी जला कर जाति के सिरताज का। | ||
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क्यों जले तन हैं बजाते तालियाँ। | क्यों जले तन हैं बजाते तालियाँ। | ||
बेतुकेपन, बाँकपन बेहूदपन। | बेतुकेपन, बाँकपन बेहूदपन। | ||
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बैलपन को हैं किया करती हवा। | बैलपन को हैं किया करती हवा। | ||
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हैं बलायें बावलेपन के लिए। | हैं बलायें बावलेपन के लिए। | ||
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तालियाँ हैं बेदहलपन की दवा। | तालियाँ हैं बेदहलपन की दवा। | ||
चेलियाँ औ सहेलियाँ दोनों। | चेलियाँ औ सहेलियाँ दोनों। | ||
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बोलियों के सकल कला की हैं। | बोलियों के सकल कला की हैं। | ||
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रीझ की और खीझ आँखों की। | रीझ की और खीझ आँखों की। | ||
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तालियाँ पुतलियाँ बला की हैं। | तालियाँ पुतलियाँ बला की हैं। | ||
− | भर उमंगें बना | + | भर उमंगें बना दुगुना दिल। |
− | + | रख बड़े मान साथ मुँह-लाली। | |
− | रख बड़े मान साथ मुँह - लाली। | + | |
− | + | ||
बेखुली आँख खोल देती है। | बेखुली आँख खोल देती है। | ||
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बात तौली हुई तुली ताली। | बात तौली हुई तुली ताली। | ||
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19:22, 23 मार्च 2014 के समय का अवतरण
तो भलाई क्या हुई रगड़े बढ़े।
नींव झगड़े की अगर डाली गई।
हाथ के तोते किसी के जब उड़े।
तब बजाई किस लिए ताली गई।
झूठ के सामने झुके सिर क्यों।
फूल से लोग क्यों उसे न सजें।
सच कहें, क्यों न गालियाँ खायें।
तालियाँ क्यों न बार बार बजें।
प्यालियाँ जो हैं बड़े आनन्द की।
डालियाँ वे क्यों कपट छल की बनें।
भर बहुत मैले मनों के मैल से।
तालियाँ क्यों नालियाँ मल की बनें।
हितभरी बात जग-हितु की सुन।
भर गई लोक-भक्ति की थाली।
सज उठी फूल से सजी पगड़ी।
बज उठी धूम धाम से ताली।
धूम से बेढंगपन है चल रहा।
हैं नहीं बेहूदगी आँखें खुली।
तोड़ देने के लिए हित की कमर।
तालियों की तड़तड़ाहट है तुली।
डालियाँ अब वे न फूलों की रहीं।
भर गईं उन की धुनों में गालियाँ।
तूल हैं तलबेलियों को दे रही।
तौल कर बजती नहीं अब तालियाँ।
तब भला वह किस लिए बजती रही।
लोग उसको जब न रस-डाली कहें।
खोल पाई जब न ताला प्यार का।
तब उसे हम किस तरह ताली कहें।
देस को, जाति को समाजों को।
क्यों कलह-फूल से सजाते हैं।
लाग की बेलियों तले बैठे।
लोग क्यों तालियाँ बजाते हैं।
लाग से वे जल रहे हैं तो जलें।
क्यों जला घर सुन रहे हैं गालियाँ।
जी जला कर जाति के सिरताज का।
क्यों जले तन हैं बजाते तालियाँ।
बेतुकेपन, बाँकपन बेहूदपन।
बैलपन को हैं किया करती हवा।
हैं बलायें बावलेपन के लिए।
तालियाँ हैं बेदहलपन की दवा।
चेलियाँ औ सहेलियाँ दोनों।
बोलियों के सकल कला की हैं।
रीझ की और खीझ आँखों की।
तालियाँ पुतलियाँ बला की हैं।
भर उमंगें बना दुगुना दिल।
रख बड़े मान साथ मुँह-लाली।
बेखुली आँख खोल देती है।
बात तौली हुई तुली ताली।