"निश्शब्द / मन्त्रेश्वर झा" के अवतरणों में अंतर
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मन्त्रेश्वर झा |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
{{KKCatMaithiliRachna}} | {{KKCatMaithiliRachna}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | कर्म, अकर्म जखन दुष्कर्म घोषित | |
− | जखन | + | भऽ जाइत छैक |
− | जाइत छैक | + | वाक्हरण तखनो भऽ जाइत छैक |
− | + | आ लोक निश्शब्द भऽ जाइत अछि | |
− | + | दोस्त, महिम, संबंधिक अपेक्षित | |
− | + | जखन रास्ता बदलि लैत छैक | |
− | + | आ अहाँ अपन | |
− | + | स्वयं पर टकटकी लगेबाक | |
− | + | लेल विवश भऽ जाइ छी | |
− | + | तखनो भऽ जाइत छी निश्शब्द। | |
− | + | ‘ब्रह्म सत्यम्’ होथि वा नहि | |
− | + | जगत मिथ्याक वोध जाबत | |
− | + | होबय लगैत छैक | |
− | + | ता धरि नालाक जल नदी मे | |
− | + | आ नदीक जल महा उदधिक गर्भ मे | |
− | + | विलीन भऽ जाइत छैक | |
− | + | स्वयं केँ चिन्हबाक आ स्वयं सँ | |
− | + | वार्ता करबाक समय जखन | |
− | जाइत छैक | + | प्रकट होबय लगैत छैक |
− | + | तखनो लोक भऽ जाइत अछि | |
− | + | निश्शब्द। | |
− | + | केहनो होउ आस्तिक वा नास्तिक | |
− | + | सभटा द्वैत भाव टुटय लगैत छैक | |
− | + | अपन आ आनक द्वैत, | |
− | अपन | + | मित्रक आ शत्रुक द्वैत, |
− | आ | + | मित्रक आ शत्रुक द्वैत, |
− | + | पापक आ पुण्यक द्वैत | |
− | + | कर्मक आ अकर्मक द्वैत | |
− | + | सभ किछु भऽ जाइत छैक | |
− | + | क्षत विक्षत, | |
− | + | आत्मा दाह भऽ जाइत छैक समक्ष, | |
− | + | समेटने अज्ञात | |
− | + | विराट परमात्मा, | |
− | + | शब्द तखनो ने बहराइत छैक | |
− | + | आ लोक भऽ जाइत अछि | |
− | + | निश्शब्द, | |
− | + | टुकुर टुकुर तकैत | |
− | + | टुकुर टुकुर तकैत। | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
</poem> | </poem> |
13:44, 24 मार्च 2014 के समय का अवतरण
कर्म, अकर्म जखन दुष्कर्म घोषित
भऽ जाइत छैक
वाक्हरण तखनो भऽ जाइत छैक
आ लोक निश्शब्द भऽ जाइत अछि
दोस्त, महिम, संबंधिक अपेक्षित
जखन रास्ता बदलि लैत छैक
आ अहाँ अपन
स्वयं पर टकटकी लगेबाक
लेल विवश भऽ जाइ छी
तखनो भऽ जाइत छी निश्शब्द।
‘ब्रह्म सत्यम्’ होथि वा नहि
जगत मिथ्याक वोध जाबत
होबय लगैत छैक
ता धरि नालाक जल नदी मे
आ नदीक जल महा उदधिक गर्भ मे
विलीन भऽ जाइत छैक
स्वयं केँ चिन्हबाक आ स्वयं सँ
वार्ता करबाक समय जखन
प्रकट होबय लगैत छैक
तखनो लोक भऽ जाइत अछि
निश्शब्द।
केहनो होउ आस्तिक वा नास्तिक
सभटा द्वैत भाव टुटय लगैत छैक
अपन आ आनक द्वैत,
मित्रक आ शत्रुक द्वैत,
मित्रक आ शत्रुक द्वैत,
पापक आ पुण्यक द्वैत
कर्मक आ अकर्मक द्वैत
सभ किछु भऽ जाइत छैक
क्षत विक्षत,
आत्मा दाह भऽ जाइत छैक समक्ष,
समेटने अज्ञात
विराट परमात्मा,
शब्द तखनो ने बहराइत छैक
आ लोक भऽ जाइत अछि
निश्शब्द,
टुकुर टुकुर तकैत
टुकुर टुकुर तकैत।