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"जब से देखा है तुम्हें उकेरते चित्रों में / सुमन केशरी" के अवतरणों में अंतर
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जब से देखा है
तुम्हें उकेरते चित्रों को
भावमग्न
एक-एक रेखाओं पर
तुम्हारे कोमल स्पर्शों की छुवन
मेरे भीतर की रूह
छटपटाती है
इन रेखाओं में समा जाने को
खिल जाने को तुम्हारे भीतर
कमलवत
आखिर शिला देख कर ही तो रोया था कविमन अहिल्या के लिए ...