लेखक: [[भवानीप्रसाद मिश्र]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=भवानीप्रसाद मिश्र]]}}{{KKCatKavita}}<poem>मैं असभ्य हूँ क्योंकि खुले नंगे पाँवों चलता हूँमैं असभ्य हूँ क्योंकि धूल की गोदी में पलता हूँमैं असभ्य हूँ क्योंकि चीरकर धरती धान उगाता हूँमैं असभ्य हूँ क्योंकि ढोल पर बहुत ज़ोर से गाता हूँ
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*आप सभ्य हैं क्योंकि हवा में उड़ जाते हैं ऊपरआप सभ्य हैं क्योंकि आग बरसा देते हैं भू परआप सभ्य हैं क्योंकि धान से भरी आपकी कोठीआप सभ्य हैं क्योंकि ज़ोर से पढ़ पाते हैं पोथीआप सभ्य हैं क्योंकि आपके कपड़े स्वयं बने हैंआप सभ्य हैं क्योंकि जबड़े ख़ून सने हैं
मैं असभ्य हूँ क्योंकि खुले नंगे पांवों चलता हूँ<br>मैं असभ्य हूँ क्योंकि धूल की गोदी में पलता हूँ<br>मैं असभ्य हूँ क्योंकि चीरकर धरती धान उगाता हूँ<br>मैं असभ्य हूँ क्योंकि ढोल पर बहुत जोर से गाता हूँ<br><br> आप सभ्य हैं क्योंकि हवा में उड़ जाते हैं ऊपर<br>आप सभ्य हैं क्योंकि आग बरसा देते हैं भू पर<br>आप सभ्य हैं क्योंकि धान से भरी आपकी कोठी<br>आप सभ्य हैं क्योंकि ज़ोर से पढ़ पाते हैं पोथी<br>आप सभ्य हैं क्योंकि आपके कपड़े स्वयं बने हैं<br>आप सभ्य हैं क्योंकि जबड़े खून सने हैं<br><br> आप बड़े चिंतित हैं मेरे पिछड़ेपन के मारे<br>आप सोचते हैं कि सीखता यह भी ढंग ढँग हमारे<br>मैं उतारना नहीं चाहता जाहिल अपने बाने<br>धोती-कुरता बहुत ज़ोर से लिपटाये लिपटाए हूँ याने !<br><br/poem>