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हमारी जिन्दगी के दिन,<br>बड़े संघर्ष के दिन हैं।<br>हैं!हमेशा काम करते हैंनहीं मिलता कहीं कपड़ा,<br>मगर कम दाम मिलते लँगोटी हम पहनते हैं।<br>प्रतिक्षण हम बुरे शासन--<br>हमारी औरतों के तनबुरे शोषण से पिसते हैं!!<br>उघारे ही झलकते हैं।।अपढ़, अज्ञान, अधिकारों से<br>हजारों आदमी के शववंचित हम कलपते कफन तक को तरसते हैं।<br>सड़क पर खूब बिना ओढ़े हुए चदरा,खुले मरघट को चलते<br>पैर के जूते-से घिसते हैं।।<br>हमारी जिन्दगी के दिन, <br>हमारी ग्लानि लाज के दिन हैं!!<br><br>
हमारी जिन्दगी के दिन, <br>बड़े संघर्ष के दिन हैं!<br>न दाना एक मिलता हैहमारे देश में अब भी,<br>खलाये पेट फिरते विदेशी घात करते हैं।<br>मुनाफाखोर की गोदाम<br>बड़े राजे, महाराजे,के ताले न खुलते हमें मोहताज करते हैं।।<br>विकलहमें इंसान के बदले, बेहाल, भूखे हम<br>तड़पते औ' तरसते अधम सूकर समझते हैं।<br>हमारे पेट का दाना<br>गले में डालकर रस्सीहमें इनकार करते कुटिल कानून कसते हैं।।<br>हमारी जिन्दगी के दिन, <br>हमारी भूख कैद के दिन हैं!!<br><br>
हमारी जिन्दगी के दिन, <br>बड़े संघर्ष के दिन हैं!<br>नहीं मिलता कहीं कपड़ा,<br>लँगोटी हम पहनते हैं।<br>हमारी औरतों के तन<br>उघारे ही झलकते हैं।।<br>हजारों आदमी के शव<br>कफन तक को तरसते हैं।<br>बिना ओढ़े हुए चदरा,<br>खुले मरघट को चलते हैं।।<br>हमारी जिन्दगी के दिन,<br>हमारी लाज के दिन हैं!!<br><br> हमारी जिन्दगी के दिन,<br>बड़े संघर्ष के दिन हैं!<br>हमारे देश में अब भी,<br>विदेशी घात करते हैं।<br>बड़े राजे, महाराजे,<br>हमें मोहताज करते हैं।।<br>हमें इंसान के बदले,<br>अधम सूकर समझते हैं।<br>गले में डालकर रस्सी<br>कुटिल कानून कसते हैं।।<br>हमारी जिन्दगी के दिन,<br>हमारी कैद के दिन हैं!!<br><br> हमारी जिन्दगी के दिन,<br>बड़े संघर्ष के दिन हैं!<br>इरादा कर चुके हैं हम,<br>प्रतिज्ञा आज करते हैं।<br>हिमालय और सागर में,<br>नया तूफान रचते हैं।।<br>गुलामी को मसल देंगे<br>न हत्यारों से डरते हैं।<br>हमें आजाद जीना है<br>इसी से आज मरते हैं।।<br>हमारी जिन्दगी के दिन,<br>हमारे होश के दिन हैं!!<br/poem>