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"कनबहरे / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

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कोई नहीं सुनता  
 
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झरी पत्तियों की झिरझिरी  
 
झरी पत्तियों की झिरझिरी  
 
 
न पत्तियों के पिता पेड़  
 
न पत्तियों के पिता पेड़  
 
 
न पेड़ों के मूलाधार पहाड़  
 
न पेड़ों के मूलाधार पहाड़  
 
 
न आग का दौड़ता प्रकाश  
 
न आग का दौड़ता प्रकाश  
 
 
न समय का उड़ता शाश्वत विहंग  
 
न समय का उड़ता शाश्वत विहंग  
 
 
न सिंधु का अतल जल-ज्वार  
 
न सिंधु का अतल जल-ज्वार  
 
 
सब हैं -  
 
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     सब एक दूसरे से अधिक
 
     सब एक दूसरे से अधिक
 
 
                 कनबहरे,  
 
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                 अपने आप में बंद, ठहरे।
                 अपने आप में बंद, ठहरे ।
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11:16, 1 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण

कोई नहीं सुनता
झरी पत्तियों की झिरझिरी
न पत्तियों के पिता पेड़
न पेड़ों के मूलाधार पहाड़
न आग का दौड़ता प्रकाश
न समय का उड़ता शाश्वत विहंग
न सिंधु का अतल जल-ज्वार
सब हैं -
    सब एक दूसरे से अधिक
                कनबहरे,
                अपने आप में बंद, ठहरे।