भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पेट / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ |अ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

14:25, 2 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण

कुछ बड़ाई अगर नहीं रखते।
हो सके कुछ न तो बड़े हो कर।
दुख कड़ाई किसे नहीं देती।
देख लो पेट तुम कड़े हो कर।

तू न करता अगर सितम होता।
तो बड़े चैन से बसर होती।
तो न हम बैठते पकड़ कर सर।
पेट तुझ में न जो कसर होती।

हो गरम जब हमें सताता है।
हो नरम जब रहा भरम खोता।
पेट! दे तो बता मरम इस का।
क्यों रहा तू नरम गरम होता।