भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सबहि सौं पृथक प्रेमपथ पावन / हनुमानप्रसाद पोद्दार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
|संग्रह=पद-रत्नाकर / भाग- 3 / हनुमानप्रसाद पोद्दार | |संग्रह=पद-रत्नाकर / भाग- 3 / हनुमानप्रसाद पोद्दार | ||
}} | }} | ||
− | {{ | + | {{KKCatPad}} |
<poem> | <poem> | ||
सबहि सौं पृथक प्रेमपथ पावन। | सबहि सौं पृथक प्रेमपथ पावन। |
14:06, 4 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण
सबहि सौं पृथक प्रेमपथ पावन।
सूधौ, सरल, सरस, रस-बरसी स्यामहि सपदि मिलावन॥
बिषय-जगत सौं होय आँधरौ, प्रियतम तन जो धावन।
प्रियतम-सुख सरबस, जीवन निज, सुख-सुधि सहज भुलावन॥
बानी-मन तें परै महारस महाभाव मन-भावन।
प्रेम-सिंधु सोई सहसा रसराज रसिक प्रगटावन॥