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"अफ़्सोस है / अकबर इलाहाबादी" के अवतरणों में अंतर

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|रचनाकार=डा मीरा रामनिवास
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अफ़्सोस है गुल्शन ख़िज़ाँ लूट रही है
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शाख़े-गुले-तर सूख के अब टूट रही है
  
== '''''सुखद अहसास''''' ==
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इस क़ौम से वह आदते-देरीनये-ताअत
 
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बिलकुल नहीं छूटी है मगर छूट रही है
 
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12:30, 9 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण

अफ़्सोस है गुल्शन ख़िज़ाँ लूट रही है
शाख़े-गुले-तर सूख के अब टूट रही है

इस क़ौम से वह आदते-देरीनये-ताअत
बिलकुल नहीं छूटी है मगर छूट रही है