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गुलशनों पर शबाब है उसका
ये करम बेहिसाब है उसका
अश्क कितने मिले, खुशी कितनी
उलटा-सुलटा हिसाब है उसका
मौत तो उसकी ओट लेती है
ज़िन्दगी इक नक़ाब है उसका
ये ख़ुदाई जो देखते हैं हम
कुछ नहीं, एक ख़्वाब है उसका
तन की चादर महीन है इतनी
बस मुरव्वत हिजाब है उसका
साज़ सरगम समाए हैं घट में
दिल की धड़कन रबाब है उसका
कौन समझा है ज़ीस्त को ‘देवी’
ढंग ही लाजवाब है उसका