भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"उम्र बहुत अब जी ली जी ली / देवी नांगरानी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देवी नांगरानी |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

17:27, 9 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण

उम्र बहुत अब जी ली जी ली
नब्ज़ चले है ढीली ढीली

डूब रही है दिल की धड़कन
आँखें हुई हैं नीली नीली

ख़ौफ दिया है किस आहट ने
पड़ गई रंगत पीली पीली

कहता क्या गुड़ खाकर गूँगा
जिसने जबाँ ही सी ली सी ली

यूँ तो सहरा है मेरा दिल
फिर भी है आँखें गीली गीली

तिनकों जैसा तन है मेरा
आग लगाये तीली तीली