भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कितने पिये है दर्द के / देवी नांगरानी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देवी नांगरानी |संग्रह=चराग़े-दिल / देवी नांगरानी }} [[Category...)
 
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=चराग़े-दिल / देवी नांगरानी  
 
|संग्रह=चराग़े-दिल / देवी नांगरानी  
 
}}
 
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
+
{{KKCatGhazal}}
 +
<poem>
 +
कितने पिये है दर्द के, आंसू बताऊं क्या
 +
ये दास्ताने-ग़म भी किसी को सुनाऊं क्या?
  
कितने पिये है दर्द के, आंसू बताऊं क्या<br>
+
रिश्तों के आईने में दरारें हैं पड़ गईं
ये दास्ताने-ग़म भी किसी को सुनाऊं क्या?<br><br>
+
अब आईने से चेहरे को अपने छुपाऊं क्या?
  
रिश्तों के आईने में दरारें हैं पड़ गईं<br>
+
दुश्मन जो आज बन गए, कल तक तो भाई थे
अब आईने से चेहरे को अपने छुपाऊं क्या?<br><br>
+
मजबूरियां हैं मेरी, मैं उनसे छुपाऊं क्या?
  
दुश्मन जो आज बन गए, कल तक तो भाई थे<br>
+
चारों तरफ से तेज़ हवाओं में हूं घिरी
मजबूरियां हैं मेरी, मैं उनसे छुपाऊं क्या?<br><br>
+
इन आँधियों के बीच में दीपक जलाऊं क्या?
  
चारों तरफ से तेज़ हवाओं में हूं घिरी<br>
+
दीवानगी में कट गए मौसम बहार के
इन आँधियों के बीच में दीपक जलाऊं क्या?<br><br>
+
अब पतझड़ों के खौफ से दामन बचाऊं क्या?
  
दीवानगी में कट गए मौसम बहार के<br>
+
साजि़श मेरे खि़लाफ मेरे दोस्तों की थी
अब पतझड़ों के खौफ से दामन बचाऊं क्या?<br><br>
+
 
+
साजि़श मेरे खि़लाफ मेरे दोस्तों की थी<br>
+
 
इल्ज़ाम दुशमनों पे मैं ‘देवी’ लगाऊं क्या?
 
इल्ज़ाम दुशमनों पे मैं ‘देवी’ लगाऊं क्या?
 +
</poem>

08:19, 10 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण

कितने पिये है दर्द के, आंसू बताऊं क्या
ये दास्ताने-ग़म भी किसी को सुनाऊं क्या?

रिश्तों के आईने में दरारें हैं पड़ गईं
अब आईने से चेहरे को अपने छुपाऊं क्या?

दुश्मन जो आज बन गए, कल तक तो भाई थे
मजबूरियां हैं मेरी, मैं उनसे छुपाऊं क्या?

चारों तरफ से तेज़ हवाओं में हूं घिरी
इन आँधियों के बीच में दीपक जलाऊं क्या?

दीवानगी में कट गए मौसम बहार के
अब पतझड़ों के खौफ से दामन बचाऊं क्या?

साजि़श मेरे खि़लाफ मेरे दोस्तों की थी
इल्ज़ाम दुशमनों पे मैं ‘देवी’ लगाऊं क्या?