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"आंधियों के भी पर कतरते हैं / देवी नांगरानी" के अवतरणों में अंतर
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आंधियों के भी पर कतरते हैं | आंधियों के भी पर कतरते हैं | ||
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हौसले जब उड़ान भरते हैं. | हौसले जब उड़ान भरते हैं. | ||
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ग़ैर तो ग़ैर हैं चलो छोड़ो | ग़ैर तो ग़ैर हैं चलो छोड़ो | ||
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हम तो बस दोस्तों से डरते हैं. | हम तो बस दोस्तों से डरते हैं. | ||
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जिंदगी इक हसीन धोका है | जिंदगी इक हसीन धोका है | ||
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फिर भी हंस कर सुलूक करते हैं. | फिर भी हंस कर सुलूक करते हैं. | ||
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राह रौशन हो आने वालों की | राह रौशन हो आने वालों की | ||
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हम चराग़ों में खून भरते हैं. | हम चराग़ों में खून भरते हैं. | ||
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खौफ़ तारी है जिनकी दहशत का | खौफ़ तारी है जिनकी दहशत का | ||
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लोग उन्हीं को सलाम करते हैं. | लोग उन्हीं को सलाम करते हैं. | ||
कल तलक सच के रास्तों पर थे | कल तलक सच के रास्तों पर थे | ||
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झूठ के पथ से अब गुज़रते हैं. | झूठ के पथ से अब गुज़रते हैं. | ||
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हम भला किस तरह से भटकेंगे | हम भला किस तरह से भटकेंगे | ||
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हम तो रौशन ज़मीर रखते हैं | हम तो रौशन ज़मीर रखते हैं | ||
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आदमी देवता नहीं फिर भी | आदमी देवता नहीं फिर भी | ||
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बन के शैतान क्यों विचरते हैं. | बन के शैतान क्यों विचरते हैं. | ||
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11:26, 11 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण
आंधियों के भी पर कतरते हैं
हौसले जब उड़ान भरते हैं.
ग़ैर तो ग़ैर हैं चलो छोड़ो
हम तो बस दोस्तों से डरते हैं.
जिंदगी इक हसीन धोका है
फिर भी हंस कर सुलूक करते हैं.
राह रौशन हो आने वालों की
हम चराग़ों में खून भरते हैं.
खौफ़ तारी है जिनकी दहशत का
लोग उन्हीं को सलाम करते हैं.
कल तलक सच के रास्तों पर थे
झूठ के पथ से अब गुज़रते हैं.
हम भला किस तरह से भटकेंगे
हम तो रौशन ज़मीर रखते हैं
आदमी देवता नहीं फिर भी
बन के शैतान क्यों विचरते हैं.