भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"साँचा:KKPoemOfTheWeek" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
  
 
<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
 
<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
मजदूर का जन्म</div>
+
तुम सामने आते हो पहलू बदल बदल कर</div>
  
 
<div style="text-align: center;">
 
<div style="text-align: center;">
रचनाकार: [[केदारनाथ अग्रवाल]]
+
रचनाकार: [[सुरेश सलिल]]
 
</div>
 
</div>
  
 
<div style="border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; line-height: 0; margin: 0 auto; min-height: 590px; padding: 20px 20px 20px 20px; white-space: pre;"><div style="float:left; padding:0 25px 0 0">[[चित्र:Kk-poem-border-1.png|link=]]</div>
 
<div style="border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; line-height: 0; margin: 0 auto; min-height: 590px; padding: 20px 20px 20px 20px; white-space: pre;"><div style="float:left; padding:0 25px 0 0">[[चित्र:Kk-poem-border-1.png|link=]]</div>
एक हथौड़ेवाला घर में और हुआ !
+
तुम सामने आते हो पहलू बदल-बदल कर
हाथी सा बलवान,
+
बिजली-सी गिराते हो पहलू बदल-बदल कर
जहाजी हाथों वाला और हुआ !
+
 
सूरज-सा इन्सान,
+
इस आइने में देखूँ - उस आइने में देखूँ
तरेरी आँखोंवाला और हुआ !!
+
कुछ राज़ छिपाते हो पहलू बदल-बदल कर
एक हथौड़ेवाला घर में और हुआ!
+
 
माता रही विचार,
+
पहलू बदल-बदल कर इक़रार-ए-इश्क़ कैसा
अँधेरा हरनेवाला और हुआ !
+
उँगली पे' नचाते हो, पहलू बदल-बदल कर
दादा रहे निहार,  
+
 
सबेरा करनेवाला और हुआ !!
+
तुमको ही रिझाने को, ये सारी ग़ज़लगोई
एक हथौड़ेवाला घर में और हुआ !
+
हर शे'र में आते हो, पहलू बदल-बदल कर
जनता रही पुकार
+
 
सलामत लानेवाला और हुआ !
+
इर्शाद-ओ-मुक़र्रर की उम्मीद कौन बाँधे
सुन ले री सरकार!
+
जब शमअ हटाते हो, पहलू बदल-बदल कर
कयामत ढानेवाला और हुआ !!
+
 
एक हथौड़ेवाला घर में और हुआ !
+
(रचनाकाल : 2003)
 
</div>
 
</div>
 
</div></div>
 
</div></div>

22:16, 18 अप्रैल 2014 का अवतरण

तुम सामने आते हो पहलू बदल बदल कर

रचनाकार: सुरेश सलिल

Kk-poem-border-1.png

तुम सामने आते हो पहलू बदल-बदल कर बिजली-सी गिराते हो पहलू बदल-बदल कर

इस आइने में देखूँ - उस आइने में देखूँ कुछ राज़ छिपाते हो पहलू बदल-बदल कर

पहलू बदल-बदल कर इक़रार-ए-इश्क़ कैसा उँगली पे' नचाते हो, पहलू बदल-बदल कर

तुमको ही रिझाने को, ये सारी ग़ज़लगोई हर शे'र में आते हो, पहलू बदल-बदल कर

इर्शाद-ओ-मुक़र्रर की उम्मीद कौन बाँधे जब शमअ हटाते हो, पहलू बदल-बदल कर

(रचनाकाल : 2003)