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"भीतर जीवन / विपिन चौधरी" के अवतरणों में अंतर

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13:58, 22 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण

पौधे अपनी टहनियों के बल खड़े हो
धरती का खनिज सोख रहे थे

प्रेम,आत्मा के बूते
मुखर हो रहा था

डोल्फिन पानी के भीतर-बाहर
आ-जा कर प्राणवायु को लपकते दोहरी हुई जा रही थी

सीधे-सीधे कोई नहीं कह पा रहा था
उसे जीवन 'भीतर जीवन जीवन' की तलाश है