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"दिल में जब प्यार का नशा छाया... / श्रद्धा जैन" के अवतरणों में अंतर

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सह गया जो ख़िजां के ज़ोर–ओ-खम
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सह गया जो ख़िजां के सारे सितम
 
गुल उसी पेड़ पर नया आया
 
गुल उसी पेड़ पर नया आया
  

01:12, 28 अप्रैल 2014 का अवतरण

दिल में जब प्यार का नशा छाया
पंछी पिंजरे में खुद चला आया

सह गया जो ख़िजां के सारे सितम
गुल उसी पेड़ पर नया आया

सबको कह देगा, आँख का काजल
मेरे दिल ने कहाँ सकूँ पाया

क़ैद-ए-सरहद से है वफ़ा आज़ाद
राज़ ये बादलों ने समझाया

आके पहलू में बैठ जा मेरे
“श्रद्धा” अब तो है बस तेरा साया