"घिन तो नहीं आती है / नागार्जुन" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 13: | पंक्ति 13: | ||
बेतरतीब मूँछों की थिरकन | बेतरतीब मूँछों की थिरकन | ||
सच सच बतलाओ | सच सच बतलाओ | ||
− | घिन तो नहीं आती है ? | + | घिन तो नहीं आती है? |
− | जी तो नहीं कढता है ? | + | जी तो नहीं कढता है? |
कुली मज़दूर हैं | कुली मज़दूर हैं | ||
− | बोझा ढोते हैं , खींचते हैं ठेला | + | बोझा ढोते हैं, खींचते हैं ठेला |
− | धूल धुआँ | + | धूल धुआँ भाप से पड़ता है साबका |
थके मांदे जहाँ तहाँ हो जाते हैं ढेर | थके मांदे जहाँ तहाँ हो जाते हैं ढेर | ||
सपने में भी सुनते हैं धरती की धड़कन | सपने में भी सुनते हैं धरती की धड़कन | ||
पंक्ति 25: | पंक्ति 25: | ||
आपस मैं उनकी बतकही | आपस मैं उनकी बतकही | ||
सच सच बतलाओ | सच सच बतलाओ | ||
− | जी तो नहीं कढ़ता है ? | + | जी तो नहीं कढ़ता है? |
− | घिन तो नहीं आती है ? | + | घिन तो नहीं आती है? |
दूध-सा धुला सादा लिबास है तुम्हारा | दूध-सा धुला सादा लिबास है तुम्हारा | ||
निकले हो शायद चौरंगी की हवा खाने | निकले हो शायद चौरंगी की हवा खाने | ||
− | बैठना है पंखे के नीचे , अगले डिब्बे मैं | + | बैठना है पंखे के नीचे, अगले डिब्बे मैं |
ये तो बस इसी तरह | ये तो बस इसी तरह | ||
लगाएंगे ठहाके, सुरती फाँकेंगे | लगाएंगे ठहाके, सुरती फाँकेंगे | ||
भरे मुँह बातें करेंगे अपने देस कोस की | भरे मुँह बातें करेंगे अपने देस कोस की | ||
सच सच बतलाओ | सच सच बतलाओ | ||
− | अखरती तो नहीं इनकी सोहबत ? | + | अखरती तो नहीं इनकी सोहबत? |
− | जी तो नहीं कुढता है ? | + | जी तो नहीं कुढता है? |
− | घिन तो नहीं आती है ? | + | घिन तो नहीं आती है? |
</poem> | </poem> |
11:37, 1 मई 2014 के समय का अवतरण
पूरी स्पीड में है ट्राम
खाती है दचके पै दचके
सटता है बदन से बदन
पसीने से लथपथ ।
छूती है निगाहों को
कत्थई दांतों की मोटी मुस्कान
बेतरतीब मूँछों की थिरकन
सच सच बतलाओ
घिन तो नहीं आती है?
जी तो नहीं कढता है?
कुली मज़दूर हैं
बोझा ढोते हैं, खींचते हैं ठेला
धूल धुआँ भाप से पड़ता है साबका
थके मांदे जहाँ तहाँ हो जाते हैं ढेर
सपने में भी सुनते हैं धरती की धड़कन
आकर ट्राम के अन्दर पिछले डब्बे मैं
बैठ गए हैं इधर उधर तुमसे सट कर
आपस मैं उनकी बतकही
सच सच बतलाओ
जी तो नहीं कढ़ता है?
घिन तो नहीं आती है?
दूध-सा धुला सादा लिबास है तुम्हारा
निकले हो शायद चौरंगी की हवा खाने
बैठना है पंखे के नीचे, अगले डिब्बे मैं
ये तो बस इसी तरह
लगाएंगे ठहाके, सुरती फाँकेंगे
भरे मुँह बातें करेंगे अपने देस कोस की
सच सच बतलाओ
अखरती तो नहीं इनकी सोहबत?
जी तो नहीं कुढता है?
घिन तो नहीं आती है?