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"हलौळ / ओम नागर" के अवतरणों में अंतर

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तो अेक-अेक हलौळ
 
तो अेक-अेक हलौळ
 
थांरा पगां को परस पा’र
 
थांरा पगां को परस पा’र
हो जावैगी धन्न।
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हो जावैगी धन्न।</Poem>
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पतवाणों
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लूंठां सूं लूंठा दरजी कै बी
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बूता मं कोई न्हं
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परेम को असल पतवाणो ले लेबो।
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छणीक होवै छै
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परेम की काया को दरसाव
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ज्यें केई नै
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दीखता सतां बी न्हं दीखै
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न्हं स्वाहै कोई नै फूटी आंख।
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आपणा-आपणा फीता सूं
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लेबो चाह्वै छै सगळां
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नांळा-नांळा पतवाणा
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उद्धवों कतनो ई फरल्ये भापड़ो
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गुरत की फोटळी
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माथा पै ऊंच्यां
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ब्रज की गळी-गळी।
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उद्धवों का कांधा पै धर्या
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बारहा खांटां का बा’ण सूं बी
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बुतबा म्हं न्हं आयो
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परेमपगी गोप्यां को म्हैड़लो।
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चौरासी कौस की परकमां छै
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परेम को असल पतवाणों।
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18:31, 7 मई 2014 के समय का अवतरण

अस्यां तो कस्यां हो सकै छै
कै थनै क्है दी
अर म्हनै मान ली सांच
कै कोई न्हं अब
ई कराड़ सूं ऊं कराड़ कै बीचै
ढोबो भरियो पाणी।

कै बालपणा मं थरप्यां
नद्दी की बांळू का घर-ऊसारां
ढसड़ग्यां बखत की बाळ सूं
कै नद्दी का पेट मं
न्हं र्ही
अब कोई झरण।

होबा मं तो अस्यां बी हो सकै छै
कै कुवां मं धकोल दी होवै थनै
सगळी यादां
तज द्यो होवै
लोठ्यां-डोर को सगपण।

अस्यां मं बी ज्ये
निरख ल्यें तू
ऊपरला पगथ्यां पै बैठ’र
आज बी
कुवां को बच्यों-खुच्यों अमरत
तो अेक-अेक हलौळ
थांरा पगां को परस पा’र
हो जावैगी धन्न।