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हलौळ / ओम नागर

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तो अेक-अेक हलौळ
थांरा पगां को परस पा’र
हो जावैगी धन्न।-----------------------------पतवाणों लूंठां सूं लूंठा दरजी कै बीबूता मं कोई न्हंपरेम को असल पतवाणो ले लेबो। छणीक होवै छैपरेम की काया को दरसावज्यें केई नैदीखता सतां बी न्हं दीखैन्हं स्वाहै कोई नै फूटी आंख। आपणा-आपणा फीता सूं लेबो चाह्वै छै सगळांनांळा-नांळा पतवाणाउद्धवों कतनो ई फरल्ये भापड़ोगुरत की फोटळीमाथा पै ऊंच्यांब्रज की गळी-गळी। उद्धवों का कांधा पै धर्याबारहा खांटां का बा’ण सूं बीबुतबा म्हं न्हं आयोपरेमपगी गोप्यां को म्हैड़लो। चौरासी कौस की परकमां छैपरेम को असल पतवाणों।</Poem>
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