"चाहत की बरसात / सावित्री नौटियाल काला" के अवतरणों में अंतर
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− | का से कहूं मैं अपने दिल की | + | का से कहूं मैं अपने दिल की बात। |
− | न जाने कब पूरी होगी मेरे दिल की | + | न जाने कब पूरी होगी मेरे दिल की सौगात। |
− | मैं भी कर पाउंगी प्रिय से | + | मैं भी कर पाउंगी प्रिय से संवाद। |
− | क्या कभी हो पायेगी दिल से दिल की | + | क्या कभी हो पायेगी दिल से दिल की बात।। |
− | तुम कब समझोगे मेरे दिल की | + | तुम कब समझोगे मेरे दिल की बात। |
− | अभी तो नही दिख रहे हैं कोई | + | अभी तो नही दिख रहे हैं कोई आसार। |
− | कभी तो फुरसत से मिलो हमें इक | + | कभी तो फुरसत से मिलो हमें इक बार। |
− | हमारा दिल पुकारता है तुम्हे बार- | + | हमारा दिल पुकारता है तुम्हे बार-बार।। |
− | अब तो आ जाओ मेरे मन | + | अब तो आ जाओ मेरे मन मीत। |
− | मत उलझो दुनिया की | + | मत उलझो दुनिया की भवभीत। |
− | अनमोल समय बीता जा रहा | + | अनमोल समय बीता जा रहा है। |
− | पर हमारा मिलन नहीं हो पा रहा | + | पर हमारा मिलन नहीं हो पा रहा है। |
− | हम कब चलेंगे प्यार की राहों में साथ- | + | हम कब चलेंगे प्यार की राहों में साथ-साथ। |
− | पकड़ कर बिना डर भय के एक दुसरे का | + | पकड़ कर बिना डर भय के एक दुसरे का हाथ। |
− | हम कहीं दूर इक आशना | + | हम कहीं दूर इक आशना बनाएँगे। |
− | क्या तुम वहां संग साथ रहने आ | + | क्या तुम वहां संग साथ रहने आ पाओगे।। |
− | जीवन की इस सांध्य बेला | + | जीवन की इस सांध्य बेला में। |
− | डोल रहे हैं हम अकेले अकेले | + | डोल रहे हैं हम अकेले अकेले में। |
− | अब तो साथ निभा | + | अब तो साथ निभा जाओ। |
− | बस एक बार हमारे पास आ ही | + | बस एक बार हमारे पास आ ही जाओ।। |
− | मन की कुण्ठा अब करो तुम | + | मन की कुण्ठा अब करो तुम दूर। |
− | जीवन नहीं जी पाये तुम भी | + | जीवन नहीं जी पाये तुम भी भरपूर। |
− | हमने जीवन भर अपना-अपना फर्ज निभाया | + | हमने जीवन भर अपना-अपना फर्ज निभाया है। |
− | कोई नहीं बन पाया हमारा साया | + | कोई नहीं बन पाया हमारा साया है।। |
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21:46, 9 मई 2014 के समय का अवतरण
का से कहूं मैं अपने दिल की बात।
न जाने कब पूरी होगी मेरे दिल की सौगात।
मैं भी कर पाउंगी प्रिय से संवाद।
क्या कभी हो पायेगी दिल से दिल की बात।।
तुम कब समझोगे मेरे दिल की बात।
अभी तो नही दिख रहे हैं कोई आसार।
कभी तो फुरसत से मिलो हमें इक बार।
हमारा दिल पुकारता है तुम्हे बार-बार।।
अब तो आ जाओ मेरे मन मीत।
मत उलझो दुनिया की भवभीत।
अनमोल समय बीता जा रहा है।
पर हमारा मिलन नहीं हो पा रहा है।
हम कब चलेंगे प्यार की राहों में साथ-साथ।
पकड़ कर बिना डर भय के एक दुसरे का हाथ।
हम कहीं दूर इक आशना बनाएँगे।
क्या तुम वहां संग साथ रहने आ पाओगे।।
जीवन की इस सांध्य बेला में।
डोल रहे हैं हम अकेले अकेले में।
अब तो साथ निभा जाओ।
बस एक बार हमारे पास आ ही जाओ।।
मन की कुण्ठा अब करो तुम दूर।
जीवन नहीं जी पाये तुम भी भरपूर।
हमने जीवन भर अपना-अपना फर्ज निभाया है।
कोई नहीं बन पाया हमारा साया है।।