भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दूसरा वनवास (कविता) / कैफ़ी आज़मी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कैफ़ी आज़मी }}{{KKVID|v=Aryiy9N3vNY}} <poem> राम बनवास से लौटकर जब घ…) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
(4 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 4 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=कैफ़ी आज़मी | |रचनाकार=कैफ़ी आज़मी | ||
− | }}{{KKVID|v= | + | }} |
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | {{KKVID|v=x9osWaQSxK8}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | राम बनवास से | + | राम बनवास से जब लौटकर घर में आये |
याद जंगल बहुत आया जो नगर में आये | याद जंगल बहुत आया जो नगर में आये | ||
रक्से-दीवानगी आंगन में जो देखा होगा | रक्से-दीवानगी आंगन में जो देखा होगा | ||
छह दिसम्बर को श्रीराम ने सोचा होगा | छह दिसम्बर को श्रीराम ने सोचा होगा | ||
इतने दीवाने कहां से मेरे घर में आये | इतने दीवाने कहां से मेरे घर में आये | ||
− | + | ||
− | कि नज़र आये | + | धर्म क्या उनका है, क्या जात है ये जानता कौन |
− | + | घर ना जलता तो उन्हें रात में पहचानता कौन | |
+ | घर जलाने को मेरा, लोग जो घर में आये | ||
+ | |||
+ | शाकाहारी हैं मेरे दोस्त, तुम्हारे ख़ंजर | ||
+ | तुमने बाबर की तरफ़ फेंके थे सारे पत्थर | ||
+ | है मेरे सर की ख़ता, ज़ख़्म जो सर में आये | ||
+ | |||
+ | पाँव सरयू में अभी राम ने धोये भी न थे | ||
+ | कि नज़र आये वहाँ ख़ून के गहरे धब्बे | ||
+ | पाँव धोये बिना सरयू के किनारे से उठे | ||
राम ये कहते हुए अपने दुआरे से उठे | राम ये कहते हुए अपने दुआरे से उठे | ||
राजधानी की फज़ा आई नहीं रास मुझे | राजधानी की फज़ा आई नहीं रास मुझे | ||
छह दिसम्बर को मिला दूसरा बनवास मुझे | छह दिसम्बर को मिला दूसरा बनवास मुझे | ||
− | <poem> | + | </poem> |
10:32, 10 मई 2014 के समय का अवतरण
यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
राम बनवास से जब लौटकर घर में आये
याद जंगल बहुत आया जो नगर में आये
रक्से-दीवानगी आंगन में जो देखा होगा
छह दिसम्बर को श्रीराम ने सोचा होगा
इतने दीवाने कहां से मेरे घर में आये
धर्म क्या उनका है, क्या जात है ये जानता कौन
घर ना जलता तो उन्हें रात में पहचानता कौन
घर जलाने को मेरा, लोग जो घर में आये
शाकाहारी हैं मेरे दोस्त, तुम्हारे ख़ंजर
तुमने बाबर की तरफ़ फेंके थे सारे पत्थर
है मेरे सर की ख़ता, ज़ख़्म जो सर में आये
पाँव सरयू में अभी राम ने धोये भी न थे
कि नज़र आये वहाँ ख़ून के गहरे धब्बे
पाँव धोये बिना सरयू के किनारे से उठे
राम ये कहते हुए अपने दुआरे से उठे
राजधानी की फज़ा आई नहीं रास मुझे
छह दिसम्बर को मिला दूसरा बनवास मुझे