"प्रेम / शमशेर बहादुर सिंह" के अवतरणों में अंतर
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द्रव्य नहीं कुछ मेरे पास | द्रव्य नहीं कुछ मेरे पास | ||
− | + | फिर भी मैं करता हूँ प्यार | |
− | फिर भी मैं करता | + | |
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रूप नहीं कुछ मेरे पास | रूप नहीं कुछ मेरे पास | ||
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फिर भी मैं करता हूं प्यार | फिर भी मैं करता हूं प्यार | ||
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सांसारिक व्यवहार न ज्ञान | सांसारिक व्यवहार न ज्ञान | ||
− | + | फिर भी मैं करता हूँ प्यार | |
− | फिर भी मैं करता | + | |
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शक्ति न यौवन पर अभिमान | शक्ति न यौवन पर अभिमान | ||
− | + | फिर भी मैं करता हूँ प्यार | |
− | फिर भी मैं करता | + | कुशल कलाविद् हूँ न प्रवीण |
− | + | फिर भी मैं करता हूँ प्यार | |
− | कुशल कलाविद् | + | |
− | + | ||
− | फिर भी मैं करता | + | |
− | + | ||
केवल भावुक दीन मलीन | केवल भावुक दीन मलीन | ||
− | + | फिर भी मैं करता हूँ प्यार। | |
− | फिर भी मैं करता | + | |
मैंने कितने किए उपाय | मैंने कितने किए उपाय | ||
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किन्तु न मुझ से छूटा प्रेम | किन्तु न मुझ से छूटा प्रेम | ||
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सब विधि था जीवन असहाय | सब विधि था जीवन असहाय | ||
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किन्तु न मुझ से छूटा प्रेम | किन्तु न मुझ से छूटा प्रेम | ||
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सब कुछ साधा, जप, तप, मौन | सब कुछ साधा, जप, तप, मौन | ||
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किन्तु न मुझ से छूटा प्रेम | किन्तु न मुझ से छूटा प्रेम | ||
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कितना घूमा देश-विदेश | कितना घूमा देश-विदेश | ||
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किन्तु न मुझ से छूटा प्रेम | किन्तु न मुझ से छूटा प्रेम | ||
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तरह-तरह के बदले वेष | तरह-तरह के बदले वेष | ||
− | + | किन्तु न मुझ से छूटा प्रेम। | |
− | किन्तु न मुझ से छूटा | + | |
− | + | ||
उसकी बात-बात में छल है | उसकी बात-बात में छल है | ||
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फिर भी है वह अनुपम सुंदर | फिर भी है वह अनुपम सुंदर | ||
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माया ही उसका संबल है | माया ही उसका संबल है | ||
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फिर भी है वह अनुपम सुंदर | फिर भी है वह अनुपम सुंदर | ||
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वह वियोग का बादल मेरा | वह वियोग का बादल मेरा | ||
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फिर भी है वह अनुपम सुंदर | फिर भी है वह अनुपम सुंदर | ||
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छाया जीवन आकुल मेरा | छाया जीवन आकुल मेरा | ||
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फिर भी है वह अनुपम सुंदर | फिर भी है वह अनुपम सुंदर | ||
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केवल कोमल, अस्थिर नभ-सी | केवल कोमल, अस्थिर नभ-सी | ||
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फिर भी है वह अनुपम सुंदर | फिर भी है वह अनुपम सुंदर | ||
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वह अंतिम भय-सी, विस्मय-सी | वह अंतिम भय-सी, विस्मय-सी | ||
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फिर भी है वह अनुपम सुंदर । | फिर भी है वह अनुपम सुंदर । | ||
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(1937,1938 के आसपास रचित,'कुछ कविताएं' नामक कविता-संग्रह से) | (1937,1938 के आसपास रचित,'कुछ कविताएं' नामक कविता-संग्रह से) |
09:37, 12 मई 2014 के समय का अवतरण
द्रव्य नहीं कुछ मेरे पास
फिर भी मैं करता हूँ प्यार
रूप नहीं कुछ मेरे पास
फिर भी मैं करता हूं प्यार
सांसारिक व्यवहार न ज्ञान
फिर भी मैं करता हूँ प्यार
शक्ति न यौवन पर अभिमान
फिर भी मैं करता हूँ प्यार
कुशल कलाविद् हूँ न प्रवीण
फिर भी मैं करता हूँ प्यार
केवल भावुक दीन मलीन
फिर भी मैं करता हूँ प्यार।
मैंने कितने किए उपाय
किन्तु न मुझ से छूटा प्रेम
सब विधि था जीवन असहाय
किन्तु न मुझ से छूटा प्रेम
सब कुछ साधा, जप, तप, मौन
किन्तु न मुझ से छूटा प्रेम
कितना घूमा देश-विदेश
किन्तु न मुझ से छूटा प्रेम
तरह-तरह के बदले वेष
किन्तु न मुझ से छूटा प्रेम।
उसकी बात-बात में छल है
फिर भी है वह अनुपम सुंदर
माया ही उसका संबल है
फिर भी है वह अनुपम सुंदर
वह वियोग का बादल मेरा
फिर भी है वह अनुपम सुंदर
छाया जीवन आकुल मेरा
फिर भी है वह अनुपम सुंदर
केवल कोमल, अस्थिर नभ-सी
फिर भी है वह अनुपम सुंदर
वह अंतिम भय-सी, विस्मय-सी
फिर भी है वह अनुपम सुंदर ।
(1937,1938 के आसपास रचित,'कुछ कविताएं' नामक कविता-संग्रह से)