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"हिमन्ती बयार / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
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दर्द गीत में रुँधा रहा-बह निकला गल कर मींड में- | दर्द गीत में रुँधा रहा-बह निकला गल कर मींड में- | ||
तुम हो मेरे अन्तर में पर मैं खोया हूँ भीड़ में! | तुम हो मेरे अन्तर में पर मैं खोया हूँ भीड़ में! |
13:48, 12 मई 2014 के समय का अवतरण
(1)
हवा हिमन्ती सन्नाती है चीड़ में,
सहमे पंछी चिहुँक उठे हैं नीड़ में,
दर्द गीत में रुँधा रहा-बह निकला गल कर मींड में-
तुम हो मेरे अन्तर में पर मैं खोया हूँ भीड़ में!
(2)
सिहर-सिहर झरते पत्ते पतझार के,
तिर चले कहाँ पंखों पर चढ़े बयार के!
-ले अन्ध वेग नौका ज्यों बिन पतवार के!
जीवन है कच्चा सूत-रहूँ मैं ऊब-डूब सागर में तेरे प्यार के!