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"सौन्दर्य का सबसे प्रिय गीत / वाज़दा ख़ान" के अवतरणों में अंतर

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09:49, 13 मई 2014 के समय का अवतरण

सौन्दर्य का सबसे प्रिय गीत
नीले हरे रंग से गुंथे देह वृक्षों में
लहरा रहा है
ख़ामोश उदासी के साथ
अंगड़ाइयां रूप लेना चाहती हैं कि
आसमान की सादगी नदी के वक्राकार मोड़
घाटियों का अन्धेरा
अनहद नाद की धुन कोई अजपा जाप
उसकी रूह में पैबस्त है
आओ अपने मन की तूलिका का
एक स्ट्रोक (स्पर्श) लगाना
चिड़िया की आंखों पर
चहचहाहट के कितने पल बीते समय में
और आने वाले समय में गुन्जार होंगे
थोड़े डर के साथ थोड़ा फासले पर
थोड़ी सी बची जगह में मन कैनवस पर
साथ ही अपनी पहली ग़लती को बचाकर
रखना भविष्य के लिये
अभी कितने रंगों से बावस्ता
होना बाकी है.