भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वह क्या लक्ष्य / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poe...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
द्वार के आगे
+
वह क्या लक्ष्य
::और द्वार: यह नहीं कि कुछ अवश्य
+
::जिसे पा कर फिर प्यास रह गयी शेष
::है उन के पार-किन्तु हर बार
+
::बताने की, क्या पाया?
::मिलेगा आलोक, झरेगी रस-धार।
+
::वह कैसा पथ-दर्शक
 +
 
 +
::जो सारा पथ देख
 +
::स्वयं फिर आया
 +
::और साथ में-आत्म-तोष से भरा-
 +
::मान-चित्र लाया!
 +
 
 +
::और वह कैसा राही
 +
::कहे कि हाँ, ठहरो, चलता हूँ
 +
::इस दोपहरी में भी, पर इतना बतला दो
 +
::कितना पैंडा मार
 +
::मिलेगी पहली छाया?
 
</poem>
 
</poem>

20:55, 13 मई 2014 के समय का अवतरण

वह क्या लक्ष्य
जिसे पा कर फिर प्यास रह गयी शेष
बताने की, क्या पाया?
वह कैसा पथ-दर्शक

जो सारा पथ देख
स्वयं फिर आया
और साथ में-आत्म-तोष से भरा-
मान-चित्र लाया!

और वह कैसा राही
कहे कि हाँ, ठहरो, चलता हूँ
इस दोपहरी में भी, पर इतना बतला दो
कितना पैंडा मार
मिलेगी पहली छाया?