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'''दृश्य १'''
(नालन्दा का खॅंडहर खँडहर गैरिक वसन पहने हुए कल्पना खॅंडहर खँडहर के भग्न प्रचीरों की ओर जिज्ञासा से देखती हुई गा रही है।)
कल्पना का गीत
यह खॅंडहर खँडहर किस स्वर्ण-अजिर का?
धूलों में सो रहा टूटकर रत्नशिखर किसके मन्दिर का?
यह खॅंडहर खँडहर किस स्वर्ण-अजिर का?
यह किस तापस की समाधि है?
कल्पने! धीरे-धीरे गा!
यह टूटा प्रासाद सिद्धि का, महिमा का खॅंडहर खँडहर है,
ज्ञानपीठ यह मानवता की तपोभूमि उर्वर है।
इस पावन गौरव-समाधि को सादर शीश झुका।
धूलों में जो चरण-चिह्न हैं,
पत्थर पर जो लिखी कभी है,
मुझे ज्ञात है, इस खॅंडहर खँडहर के
कण-कण में जो छिपी व्यथा है।
कर जोड़ सुजाता बोली।
(पट - परिवर्तन)
(सुजाता ने अपने ग्राम के वट-देवता से यह मांगा था कि अगर मुझे पुत्र रत्न की प्राप्ति हो तो मैं तुझे खीर खिलाऊँगी। उसे पुत्र हुआ और जिस दिन वह वटवृक्ष की खीर चढ़ाने वाली थी, ठीक उसी दिन, गौतम उसी वृक्ष के नीचे आ विराजमान हुए, जिससे सुजाता ने यह समझा कि वट-देवता ही देह धरकर वृक्ष के नीचे बैठ गये हैं।)
जन-रव का मुकुलित कल-कल है,
तिमिर - कक्ष में कोलाहल है,
झनक रही है अन्धकार में यह किसकी तलवार?
कौन है इस गह्वर के पार?