भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मेरे शहर के पाटे- 3 / राजेन्द्र जोशी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेन्द्र जोशी |संग्रह=सब के साथ ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:45, 14 मई 2014 के समय का अवतरण
मेरे शहर के पाटे
विश्वास और श्रद्धा से भरपूर
भरे रहते हैं
लोग बैठे रहते हैं
चर्चा में मशगूल
तुम्हारा इंतजार करेगें
चले आना
मेरे शहर में
शहर के पाटे
मजबूत बहुत हैं
भार सहते हैं
फिर भी मुस्कुराते रहते हैं
इंतजार करते ही रहते हैं
ये पाटे तुमसे बात करेगें
अपनी परम्पराओं से लबरेज
माथे पर तिलक लगाकर
तुम्हारा स्वागत करेंगे