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हर सभा और सम्मेलन के
अध्यक्ष बनाए जाओगे!
 
पढ़ने-लिखने में क्या रक्खा,
आंखें खराब हो जाती हैं।
छत्तीस कलाएं नाचेंगी,
तुम एक कला के बिना कहे ही,
 
छह-छह अर्थ बताओगे।
 
सुलझी बातों को नाहक ही,
तुम क्यों उलझाया करते हो?
जब तक हम मूरख जिन्दा हैं,
तब तक तुमको किसका ग़म है?
 
इसलिए भाइयो, एक बार
फिर बुद्धूपन की जय बोलो!
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