भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"उसकी बांहों में / राजेन्द्र जोशी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेन्द्र जोशी |संग्रह=मौन से बतक...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

00:01, 22 मई 2014 के समय का अवतरण

पुतला नहीं
आदमी मरा पड़ा है
बीच बाजार
कितने दिनों से
न मैं रोया
न वह रोयी

पर मैं प्यासा
और भूखा हँू
मेरी प्यास और भूख
मिटाने की खातिर
उसे दिखाता हूँ
ग़म नहीं अब उसके मरने का
चिन्ता मत करो उसके मरने की
और उसको उठाने की
अगर हो पैसे उसको दफनाने के
तो उन पैसों से
पहले मेरी प्यास
और भूख मिटे
उसकी बाँहों में