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एक विरोधाभास त्रिलोचन है. मै उसका<br> | एक विरोधाभास त्रिलोचन है. मै उसका<br> | ||
रंग-ढंग देखता रहा हूँ. बात कुछ नई<br> | रंग-ढंग देखता रहा हूँ. बात कुछ नई<br> | ||
नहीं मिली है.घोर निराशा में भी मुसका<br> | नहीं मिली है.घोर निराशा में भी मुसका<br> | ||
− | कर बोला, कुछ बात नहीं है अभी तो कई<br> | + | कर बोला, कुछ बात नहीं है अभी तो कई<br><br> |
और तमाशे मैं देखुँगा. मेरी छाती<br> | और तमाशे मैं देखुँगा. मेरी छाती<br> | ||
वज्र की बनी है, प्रहार हो, फिर प्रहार हो,<br> | वज्र की बनी है, प्रहार हो, फिर प्रहार हो,<br> | ||
बस न कहूँगा. अधीरता है मुझे न' भाती<br> | बस न कहूँगा. अधीरता है मुझे न' भाती<br> | ||
− | दुख की चढी नदी का स्वाभाविक उतार हो.<br> | + | दुख की चढी नदी का स्वाभाविक उतार हो.<br><br> |
संवत पर सवत बीते, वह कहीं न टिहटा,<br> | संवत पर सवत बीते, वह कहीं न टिहटा,<br> | ||
पाँवों में चक्कर था. द्रवित देखने वाले<br> | पाँवों में चक्कर था. द्रवित देखने वाले<br> | ||
थे. परास्त हो यहाँ से हटा, वहाँ से हटा,<br> | थे. परास्त हो यहाँ से हटा, वहाँ से हटा,<br> | ||
− | खुश थे जलते घर से हाथ सेंकने वाले.<br> | + | खुश थे जलते घर से हाथ सेंकने वाले.<br><br> |
औरों का दुख दर्द वह नहीं सह पाता है.<br> | औरों का दुख दर्द वह नहीं सह पाता है.<br> | ||
यथाशक्ति जितना बनता है कर जाता है. | यथाशक्ति जितना बनता है कर जाता है. |
19:19, 5 जनवरी 2008 के समय का अवतरण
एक विरोधाभास त्रिलोचन है. मै उसका
रंग-ढंग देखता रहा हूँ. बात कुछ नई
नहीं मिली है.घोर निराशा में भी मुसका
कर बोला, कुछ बात नहीं है अभी तो कई
और तमाशे मैं देखुँगा. मेरी छाती
वज्र की बनी है, प्रहार हो, फिर प्रहार हो,
बस न कहूँगा. अधीरता है मुझे न' भाती
दुख की चढी नदी का स्वाभाविक उतार हो.
संवत पर सवत बीते, वह कहीं न टिहटा,
पाँवों में चक्कर था. द्रवित देखने वाले
थे. परास्त हो यहाँ से हटा, वहाँ से हटा,
खुश थे जलते घर से हाथ सेंकने वाले.
औरों का दुख दर्द वह नहीं सह पाता है.
यथाशक्ति जितना बनता है कर जाता है.