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"दो-चार / पदुमलाल पन्नालाल बख्शी" के अवतरणों में अंतर
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(‘प्रेमा’, दिसम्बर 1930 में प्रकाशित) | (‘प्रेमा’, दिसम्बर 1930 में प्रकाशित) |
10:27, 26 मई 2014 के समय का अवतरण
भाव रस अलंकार से हीन, अर्थ-गौरव से शून्य असार।
नाम ही है वस जिनमें, पद्य ये हैं ऐसे दो-चार।
बिल्व पत्रों का शुष्क समूह, कब किसी से आया है काम,
उन्हीं से होता जग को तोष तुम्हारा हो यदि उन पर नाम।
लिख दिया है बस अपना नाम और क्या है लिखने की बात?
नाम ही एकमात्र है सत्य और है नाथ! वही पर्याप्त
पड़ेगी जब तक जग की दृष्टि, रहेंगे तब तक क्या ये स्पष्ट?
किन्तु तुम तो मत जाना भूल, नाम का गौरव हो मत नष्ट।
(‘प्रेमा’, दिसम्बर 1930 में प्रकाशित)