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कविता को
रचना है हथियार
सारे हथियारों के विरुद्ध
अपनी भाषा में।
बिना युद्ध किए
जीतने हैं सभी युद्ध
आज की
सभी भाषाओँ को।
धर्म के भीतर
बचाना है धर्म
बिना ईश्वर के।
सारे धर्मों से बाहर निकालना है धर्म को
ईश्वर नहीं
आदमी के पक्ष में
कविता को
अपनी भाषा में
फिर वह कोई भी भाषा हो …।
