भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"शब्द के ह्रदय में / पुष्पिता" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुष्पिता |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

15:22, 27 मई 2014 के समय का अवतरण

आँखों के भीतर
नदी है
पलकें मूँदकर
नहाती हैं आँखें
दुनिया से थककर

ओठों के अंदर
वृंदावन है
चुप हो कर जीते हैं ओंठ
स्मृति सुगंध
तृषित होने पर

ह्रदय-धरा में
प्रणय-नियाग्रा
मेरे लिए झरता हुआ
लेकिन
तुम्हारे ही लिए

निर्झर को
'नियाग्रा' कहते हो
और मैं
तुम्हें

कल को
विहान पुकारते हो
और मैं
तुम्हें

वचन को
प्राण कहते हो
और मैं
तुम्हें

सुख को
मेरे नाम से जानते हो
और मैं
तुम्हें

सुख को तुम
मेरी हथेली मानते हो
और मैं
तुम्हें।