भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ॐ जय जगदीश हरे / आरती" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Shishirmit (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) छो (Sharda suman moved page ॐ जय जगदीश / आरती to ॐ जय जगदीश हरे / आरती) |
||
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 4 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | {{ | + | {{KKGlobal}} |
− | + | {{KKDharmikRachna}} | |
− | }} | + | {{KKCatArti}} |
+ | <poem> | ||
+ | ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे॥ | ||
+ | भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥ | ||
− | + | जो ध्यावे फल पावे, दुख बिनसे मन का॥ | |
− | + | सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥ | |
− | + | मात पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी॥ | |
− | + | तुम बिन और न दूजा, आस करूँ मैं जिसकी॥ | |
− | + | तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतरयामी॥ | |
− | तुम | + | पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी॥ |
− | तुम | + | तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता॥ |
− | + | मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता॥ | |
− | तुम | + | तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति॥ |
− | + | किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति॥ | |
− | + | दीनबंधु दुखहर्ता, तुम रक्षक मेरे॥ | |
− | + | करुणा हस्त बढ़ाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ | |
− | + | विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा॥ | |
− | + | श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ | |
− | + | तन-मन-धन सब है तेरा॥ | |
− | + | तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा॥ | |
+ | </poem> |
21:30, 29 मई 2014 के समय का अवतरण
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे॥
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावे फल पावे, दुख बिनसे मन का॥
सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥
मात पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी॥
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ मैं जिसकी॥
तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी॥
तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता॥
मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति॥
किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम रक्षक मेरे॥
करुणा हस्त बढ़ाओ, द्वार पड़ा तेरे॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा॥
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥
तन-मन-धन सब है तेरा॥
तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा॥