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"मायातीत, महेश्वर मन-वच-बुद्धि परे / आरती" के अवतरणों में अंतर
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− | मायातीत, महेश्वर मन-वच-बुद्धि परे॥ | + | मायातीत, महेश्वर मन-वच-बुद्धि परे॥ |
− | आदि, अनादि, अगोचर, अविचल, अविनाशी। | + | आदि, अनादि, अगोचर, अविचल, अविनाशी। |
− | अतुल, अनन्त, अनामय, अमित, शक्ति-राशि॥ | + | अतुल, अनन्त, अनामय, अमित, शक्ति-राशि॥ |
− | अमल, अकल, अज, अक्षय, अव्यय, अविकारी। | + | अमल, अकल, अज, अक्षय, अव्यय, अविकारी। |
− | सत-चित-सुखमय, सुन्दर शिव सत्ताधारी॥ | + | सत-चित-सुखमय, सुन्दर शिव सत्ताधारी॥ |
− | विधि-हरि-शंकर-गणपति-सूर्य-शक्तिरूपा। | + | विधि-हरि-शंकर-गणपति-सूर्य-शक्तिरूपा। |
− | विश्व चराचर तुम ही, तुम ही विश्वभूपा॥ | + | विश्व चराचर तुम ही, तुम ही विश्वभूपा॥ |
− | माता-पिता-पितामह-स्वामि-सुहृद्-भर्ता। | + | माता-पिता-पितामह-स्वामि-सुहृद्-भर्ता। |
− | विश्वोत्पादक पालक रक्षक संहर्ता॥ | + | विश्वोत्पादक पालक रक्षक संहर्ता॥ |
− | साक्षी, शरण, सखा, प्रिय प्रियतम, पूर्ण प्रभो। | + | साक्षी, शरण, सखा, प्रिय प्रियतम, पूर्ण प्रभो। |
− | केवल-काल कलानिधि, कालातीत, विभो॥ | + | केवल-काल कलानिधि, कालातीत, विभो॥ |
− | राम-कृष्ण करुणामय, प्रेमामृत-सागर। | + | राम-कृष्ण करुणामय, प्रेमामृत-सागर। |
− | मन-मोहन मुरलीधर नित-नव नटनागर॥ | + | मन-मोहन मुरलीधर नित-नव नटनागर॥ |
− | सब विधि-हीन, मलिन-मति, हम अति पातकि-जन। | + | सब विधि-हीन, मलिन-मति, हम अति पातकि-जन। |
− | प्रभुपद-विमुख अभागी, कलि-कलुषित तन मन॥ | + | प्रभुपद-विमुख अभागी, कलि-कलुषित तन मन॥ |
− | आश्रय-दान दयार्णव! हम सबको दीजै। | + | आश्रय-दान दयार्णव! हम सबको दीजै। |
− | पाप-ताप हर हरि! सब, निज-जन कर लीजै॥ | + | पाप-ताप हर हरि! सब, निज-जन कर लीजै॥ |
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16:37, 30 मई 2014 के समय का अवतरण
मायातीत, महेश्वर मन-वच-बुद्धि परे॥
आदि, अनादि, अगोचर, अविचल, अविनाशी।
अतुल, अनन्त, अनामय, अमित, शक्ति-राशि॥
अमल, अकल, अज, अक्षय, अव्यय, अविकारी।
सत-चित-सुखमय, सुन्दर शिव सत्ताधारी॥
विधि-हरि-शंकर-गणपति-सूर्य-शक्तिरूपा।
विश्व चराचर तुम ही, तुम ही विश्वभूपा॥
माता-पिता-पितामह-स्वामि-सुहृद्-भर्ता।
विश्वोत्पादक पालक रक्षक संहर्ता॥
साक्षी, शरण, सखा, प्रिय प्रियतम, पूर्ण प्रभो।
केवल-काल कलानिधि, कालातीत, विभो॥
राम-कृष्ण करुणामय, प्रेमामृत-सागर।
मन-मोहन मुरलीधर नित-नव नटनागर॥
सब विधि-हीन, मलिन-मति, हम अति पातकि-जन।
प्रभुपद-विमुख अभागी, कलि-कलुषित तन मन॥
आश्रय-दान दयार्णव! हम सबको दीजै।
पाप-ताप हर हरि! सब, निज-जन कर लीजै॥