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"अब तो जागे भाग हमारे / हनुमानप्रसाद पोद्दार" के अवतरणों में अंतर

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<poem>जग उठे भाग्य अग-जग के, परम आनन्द है छाया।
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  श्याम की अह्लादिनी राधा-प्रकट का काल शुभ आया॥
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  अब तो जागे भाग हमारे,
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  हम पै टूठि ग‌ए भगवान।
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  टूठि ग‌ए भगवान  
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    हम पै रीझि ग‌ए भगवान॥
  
  बज उठीं देव-दुन्दुभियाँ, गान करने लगे किंनर,
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  कुंवरि-जनम सुनत रति बाढ़ी,  
सुर लगे पुष्प बरसाने अमित आनन्द उर में भर,
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  सजि सुठि साज, सँवारत दाढ़ी,
  ग्वालिनी वेष धारणकर सुन्दरी चलीं सुर-जाया१।
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  नाचत-गावत आयौ ढाढ़ी,  
 +
    करतौ जै-जैकार॥-(अब तो०)
  
  चले सब ग्वाल नर-नारी वृद्ध-बालक सुसज्जित हो;
+
  भाग्य हमारे कुंवरि जा‌ई,
देख शोभा परम, सहमे देव-दम्पति सुलज्जित हो,
+
  भ‌ई आज हमरी मनभा‌ई।
प्रेम के राज्य पावन में हु‌आ जो आज मन भाया२।
+
    बहुत दिनन की आस पुरा‌ई
 +
      जीवन  की सब आस पुरा‌ई
 +
      कहत पुकार-पुकार॥-(अब तो०)
  
  यशोदा-नन्द परमानन्द पा अति हो उठे विह्वल,
+
  बेटा, बेटी, बहू, लुगा‌ई,  
चले ले भेंट अति अनुपम, खिल उठे हृदय-पंकज-दल,
+
  रुके न घर, आ‌ए हरषा‌ई।
लला थे गोद जननी के, प्रफुल्लित थी कलित काया३।
+
    देत असीसें करत बड़ा‌ई,
 +
    जी भर बारंबार॥-(अब तो०)
  
  ऋषी-मुनि हु‌ए हर्षित, जो बने थे व्रज-मधुर गोपी,
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  जुग-जुग जीवौ कुंवरि प्यारी,  
फलित होता मनोरथ जान उनकी देह है ओपी,
+
  अचल सुहाग मिलै सुख-झारी।
हु‌आ सब ओर जयकारा, मिट गयी सब मलिन माया४।
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  हौ दो‌उन कुल की उजियारी,  
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    कीरति बढ़ै अपार॥-(अब तो०)
  
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स्वामी मिलै नंद कौ लाला,
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  रूप-गुननि में सब तें आला।
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  पहिरैं गुंजा-मोती माला, 
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    सोभा कौ सिंगार॥-(अब तो०)
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अग-जग सब ही कौं सुख देवै, 
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  का‌ऊ तें न कबहुँ कछु लेवै।
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    तन-मन सों भरतारहि सेवै,
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    जानि-सार-कौ-सार॥-(अब तो०)
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बिनय भरी सुनि ढाढ़ी बानी, 
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  कीर्ति कृपामयि हिय हुलसानी।
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  दिखरायौ लाली-मुख रानी, 
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    काजर-रेख सँवार॥-(अब तो०)
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देखि कुँवारि, सो अति हरषायौ,
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  बोल्यौ-मैं सब ही कछु पायौ॥
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  बोल्यौ-मैं जीवन-फल पायो।
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    अब तो केवल लाली कौ दरसन नित भायौ,
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    सो मिलै भीख सरकार॥-(अब तो०)
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बाँधि मँढ़ैया रहूँ यहीं पर, 
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  होऊँ नित निहाल दरसन कर।
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  लाली कौ मुख मधुर मनोहर, 
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    मिलै मोय अधिकार॥-(अब तो०)
 
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20:00, 30 मई 2014 के समय का अवतरण

 अब तो जागे भाग हमारे,
  हम पै टूठि ग‌ए भगवान।
   टूठि ग‌ए भगवान
    हम पै रीझि ग‌ए भगवान॥

 कुंवरि-जनम सुनत रति बाढ़ी,
  सजि सुठि साज, सँवारत दाढ़ी,
   नाचत-गावत आयौ ढाढ़ी,
    करतौ जै-जैकार॥-(अब तो०)

 भाग्य हमारे कुंवरि जा‌ई,
  भ‌ई आज हमरी मनभा‌ई।
    बहुत दिनन की आस पुरा‌ई
      जीवन की सब आस पुरा‌ई
       कहत पुकार-पुकार॥-(अब तो०)

 बेटा, बेटी, बहू, लुगा‌ई,
  रुके न घर, आ‌ए हरषा‌ई।
    देत असीसें करत बड़ा‌ई,
     जी भर बारंबार॥-(अब तो०)

 जुग-जुग जीवौ कुंवरि प्यारी,
  अचल सुहाग मिलै सुख-झारी।
   हौ दो‌उन कुल की उजियारी,
    कीरति बढ़ै अपार॥-(अब तो०)

 स्वामी मिलै नंद कौ लाला,
  रूप-गुननि में सब तें आला।
   पहिरैं गुंजा-मोती माला,
    सोभा कौ सिंगार॥-(अब तो०)

 अग-जग सब ही कौं सुख देवै,
  का‌ऊ तें न कबहुँ कछु लेवै।
    तन-मन सों भरतारहि सेवै,
     जानि-सार-कौ-सार॥-(अब तो०)

 बिनय भरी सुनि ढाढ़ी बानी,
  कीर्ति कृपामयि हिय हुलसानी।
   दिखरायौ लाली-मुख रानी,
    काजर-रेख सँवार॥-(अब तो०)

 देखि कुँवारि, सो अति हरषायौ,
  बोल्यौ-मैं सब ही कछु पायौ॥
   बोल्यौ-मैं जीवन-फल पायो।
    अब तो केवल लाली कौ दरसन नित भायौ,
     सो मिलै भीख सरकार॥-(अब तो०)

 बाँधि मँढ़ैया रहूँ यहीं पर,
  होऊँ नित निहाल दरसन कर।
   लाली कौ मुख मधुर मनोहर,
    मिलै मोय अधिकार॥-(अब तो०)