भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"राधा जा‌ई, आनँद ला‌ई / हनुमानप्रसाद पोद्दार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

09:50, 31 मई 2014 के समय का अवतरण

 राधा जा‌ई, आनँद ला‌ई, नाचौ रे, नाचौ, सब ग्वाल !
 दधि माखन की नदी बहावौ, आज सबै हो गये निहाल॥
 अगनित भरे माट माखन-दधि केसर-घोले लाये लोग।
 मतवाले-से लगे छिडक़ने खूब परस्पर शुभ-संयोग॥

 आय ग‌ई इतने में नँद की सेना लै माखन-दधि हाट।
 दधिकाँदौं में भ‌ई हरष-धुनि ढुरकन लगे माट-पर-माट॥
 माखन-दधि की सरिता उमड़ी, बही सुधा-‌आनँद की धार।
 नाचन लगे भानु नृप, बाबा नंद समुद सब लाज बिसार॥

 आय मिले बरसाना-रावल के लरिकनि सँग तोक-सुदाम।
 रैंदा-पैंदा, ग्वाल-बाल सब, मधुमंगल, मनसुख, सुखराम॥
 कूद-कूद सब लगे नाचने माखन-दधि-सरिता के बीच।
 लगे मारने माखन-लौंदे हर्षोन्मा उलीच-‌उलीच॥

 मोद भरे बरसानेवाले बोले-’नँद बाबा की जय’।
 बोल उठे नन्दीश्वरवाले-’जय, वृषभानुराज की जय’॥